Q. भारत में संघ और राज्यों के कार्य और उत्तरदायित्व केंद्रीकृत निर्णय लेने और क्षेत्रीय स्वायत्तता के बीच संतुलन को किस प्रकार प्रदर्शित करती हैं? (150 शब्द, 10 अंक) अतिरिक्त

 उत्तर:

दृष्टिकोण:

  • प्रस्तावना:  भारतीय संघवाद के बारे में लिखिए।
  • मुख्य विषय-वस्तु :
    • भारतीय राजनीति के केंद्रीकृत निर्णय लेने के चरित्र पर प्रकाश डालिए।
    • क्षेत्रीय स्वायत्तता और सत्ता के विकेंद्रीकरण के बारे में लिखें।
  • निष्कर्ष: सकारात्मक निष्कर्ष लिखें।

 

प्रस्तावना:

भारत, राज्यों के संघ के रूप में, एक ऐसे संविधान द्वारा शासित होता है जो केंद्रीकृत निर्णय लेने और क्षेत्रीय स्वायत्तता के बीच सावधानीपूर्वक संतुलन को दर्शाता है। संघ और राज्यों को सौंपे गए कार्य और जिम्मेदारियाँ एक नाजुक संतुलन स्थापित करती हैं जो विभिन्न क्षेत्रों की विविध आवश्यकताओं और आकांक्षाओं का सम्मान करते हुए एकता को बढ़ावा देती है।

1.1

मुख्य विषयवस्तु: 

यहां कुछ प्रमुख बिंदु दिए गए हैं जो केंद्रीकृत निर्णय लेने के चरित्र को उजागर करते हैं:

  • भारतीय संविधान का केंद्रीकृत चरित्र: संविधान की 7वीं अनुसूची केंद्र सरकार की ओर झुकी हुई है, जो उसके अधिकार क्षेत्र के लिए महत्वपूर्ण प्रावधान आरक्षित करती है।
    • उदाहरण के लिए, रक्षा, विदेशी मामले और मुद्रा केंद्र सरकार के विशेष नियंत्रण में हैं।
  • राज्य अविनाशी नहीं हैं: भारतीय संविधान के अनुच्छेद 2 के तहत, केंद्र सरकार के पास राजनीतिक सीमाओं को फिर से निर्धारित करने और राज्यों को पुनर्गठित करने का अधिकार है।
  • एकल नागरिकता का प्रावधान: अनुच्छेद 5-11 भारत में एकल नागरिकता का प्रावधान करता है, जो व्यक्तिगत राज्य की पहचान पर देश की एकता पर जोर देता है।
  • राज्यसभा में राज्यों के प्रतिनिधित्व की कोई समानता नहीं: संसद का ऊपरी सदन, राज्यसभा, सभी राज्यों को समान प्रतिनिधित्व प्रदान नहीं करता है।
  • आपातकालीन प्रावधान: आपातकाल के दौरान, केंद्र सरकार अनुच्छेद 352, 356 और 365 के प्रावधानों के माध्यम से राज्यों पर व्यापक नियंत्रण हासिल करती है।
  • अखिल भारतीय सेवाएँ: अखिल भारतीय सेवाओं से संबंधित अधिकारियों की भर्ती, प्रशिक्षण और पोस्टिंग केंद्र सरकार के नियंत्रण में है।
  • एकीकृत ऑडिट मशीनरी: अनुच्छेद 148 के तहत, नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (CAG) केंद्र और राज्य दोनों स्तरों पर एक एकीकृत ऑडिट मशीनरी के रूप में कार्य करता है।

दूसरी ओर, संविधान क्षेत्रीय स्वायत्तता और सत्ता के विकेंद्रीकरण का भी प्रावधान करता है:

  • राज्य सूची: राज्यों के पास राज्य सूची में सूचीबद्ध विषयों, जैसे स्वास्थ्य, शिक्षा, कानून और व्यवस्था और पुलिस पर विशेष विधायी अधिकार हैं, जिससे उन्हें इन क्षेत्रों पर शासन करने में पर्याप्त स्वायत्तता मिलती है।
  • वित्त आयोग: अनुच्छेद 280 के तहत स्थापित वित्त आयोग, संघ और राज्यों के बीच वित्तीय संसाधनों का समान वितरण सुनिश्चित करता है।
  • कुछ राज्यों के लिए विशेष प्रावधान: नागालैंड और मिजोरम जैसे कुछ राज्यों में अनुच्छेद 371 के तहत विशेष प्रावधान हैं। ये प्रावधान उन्हें विशिष्ट सुरक्षा उपाय और स्वायत्तता प्रदान करते हैं।
  • राज्यपाल की नियुक्ति: अनुच्छेद 153 के तहत राज्यपालों की नियुक्ति का उद्देश्य राज्यों के हितों की रक्षा करना और क्षेत्रीय स्वायत्तता को बढ़ावा देना है।
  • अंतरराज्य परिषद: अनुच्छेद 263 के तहत, यह केंद्र सरकार और राज्यों के बीच सहयोग और समन्वय को बढ़ावा देती है, बातचीत और आम सहमति बनाने के लिए एक मंच प्रदान करती है।
  • पंचायती राज प्रणाली: 73वें संशोधन अधिनियम,1992  ने पंचायती राज प्रणाली की शुरुआत की, जो गांव, ब्लॉक और जिला स्तरों पर स्थानीय स्वशासन की त्रिस्तरीय प्रणाली स्थापित करती है।

निष्कर्ष:

भारतीय संविधान केंद्रीकृत निर्णय लेने और क्षेत्रीय स्वायत्तता के बीच संतुलन बनाने का प्रयास करता है। जबकि केंद्र सरकार के पास महत्वपूर्ण शक्तियां हैं, क्षेत्रीय स्वायत्तता की सुरक्षा और प्राधिकरण के विकेंद्रीकरण के लिए प्रावधान मौजूद हैं। इस संतुलन का उद्देश्य देश के भीतर विभिन्न क्षेत्रों की विविधता और आकांक्षाओं को स्वीकार करते हुए राष्ट्रीय हितों की रक्षा करना है।

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