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Q. सीटीबीटी परमाणु हथियारों के प्रसार को रोकने के वैश्विक प्रयासों में कैसे योगदान देता है? इसके समक्ष क्या चुनौतियाँ मौजूद हैं, यदि हैं तो, उन चुनौतियों का उल्लेख कीजिये जिसने सीटीबीटी के पूर्ण कार्यान्वयन और प्रवर्तन में बाधा उत्पन्न की है? (250 शब्द, 15 अंक)

उत्तर:

दृष्टिकोण:

  • परिचय: शीत युद्ध के बाद के युग में सीटीबीटी के महत्व को बताते हुए शुरुआत कीजिए। इसके प्राथमिक उद्देश्य पर प्रकाश डालें: परमाणु हथियारों के प्रसार को रोकना आदि।
  • मुख्य विषयवस्तु:
    • परमाणु प्रसार को रोकने में सीटीबीटी की अभिन्न भूमिका को स्पष्ट कीजिए।
    • संधि के व्यापक कार्यान्वयन और प्रवर्तन में आने वाली बाधाओं पर प्रकाश डालें।
  • निष्कर्ष: सार्वभौमिक अनुपालन और अधिक समावेशी संवाद की आवश्यकता पर जोर दीजिए।

 

परिचय:

व्यापक परमाणु परीक्षण प्रतिबंध संधि (सीटीबीटी) का उदय, शीत युद्ध के बाद के युग में हुआ, जिसका उद्देश्य किसी भी परमाणु विस्फोट पर रोक लगाकर परमाणु हथियारों के प्रसार को रोकना है। यह संधि परमाणु शस्त्रीकरण को कम करने की आवश्यकता पर वैश्विक सहमति को दर्शाती है और अंतरराष्ट्रीय शांति और सुरक्षा को बढ़ावा देने के लिए देशों की आकांक्षाओं का प्रतीक है।

 मुख्य विषयवस्तु:

परमाणु प्रसार को रोकने में सीटीबीटी का योगदान:

  • परमाणु विस्फोटों पर पूर्ण प्रतिबंध: सभी परमाणु विस्फोटों पर प्रतिबंध लगाकर, चाहे उनका उद्देश्य कुछ भी हो, सीटीबीटी परमाणु परीक्षणों के खिलाफ एक वैश्विक मानदंड बनाता है, जो उन्नत परमाणु हथियारों के विकास में बाधा डालता है।

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  • अंतर्राष्ट्रीय निगरानी प्रणाली (आईएमएस): सीटीबीटी प्रोटोकॉल के भाग I में अंतर्राष्ट्रीय निगरानी प्रणाली(IMS) का विवरण दिया गया है, जो परमाणु विस्फोट के किसी भी संकेत के लिए सक्रिय रूप से निगरानी करता है। सेंसरों का यह वैश्विक नेटवर्क यह सुनिश्चित करता है कि कोई भी गुप्त परमाणु परीक्षण नहीं किया जा सके।
  • ऑन-साइट निरीक्षण (ओएसआई): भाग II संदिग्ध उल्लंघनों के मामले में साइट पर निरीक्षण की अनुमति देता है, जिससे राज्यों को गुप्त परमाणु परीक्षण करने का प्रयास करने से रोका जा सकता है।
  • विश्वास-निर्माण उपाय (सीबीएम): भाग III का उद्देश्य परमाणु गतिविधियों में पारदर्शिता को बढ़ावा देकर सदस्य देशों के बीच विश्वास पैदा करना है।
  • वैश्विक डेटा साझाकरण: जैसा कि फुकुशिमा परमाणु दुर्घटना से स्पष्ट है, सीटीबीटीओ के डेटा-साझाकरण ने रेडियोधर्मी उत्सर्जन पर समय पर जानकारी प्रसारित करने में मदद की, जिससे अंतर्राष्ट्रीय सहयोग और विश्वास को बढ़ावा देने में संधि की क्षमता का प्रदर्शन हुआ।

कार्यान्वयन और प्रवर्तन में चुनौतियाँ:

  • अनुसमर्थन संबंधी बाधा: 1996 में यूएनजीए(UNGA) द्वारा अनुसमर्थित किए के बावजूद, सीटीबीटी(CTBT) अभी तक लागू नहीं हुआ है। संयुक्त राज्य अमेरिका, चीन और इज़राइल जैसे प्रमुख देशों ने हस्ताक्षर किए हैं लेकिन पुष्टि नहीं की है, जबकि भारत, उत्तर कोरिया और पाकिस्तान ने हस्ताक्षर नहीं किए हैं। संधि की कठोर आवश्यकता कि 44 “अनुलग्नक 2″ राज्यों को इसे प्रभावी करने के लिए अनुसमर्थन करना होगा, एक महत्वपूर्ण बाधा रही है।
  • हाल के घटनाक्रम: रूस द्वारा अपने अनुसमर्थन को संभावित रूप से रद्द करना एक गंभीर चुनौती है, जो संभवतः अन्य देशों को अपनी प्रतिबद्धता पर पुनर्विचार करने के लिए प्रेरित कर रहा है।
  • सीटीबीटी के बाद परमाणु परीक्षण: पाकिस्तान, भारत और उत्तर कोरिया जैसे देशों ने सीटीबीटी के बाद परमाणु परीक्षण किए हैं, जो गैर-हस्ताक्षरकर्ताओं को रोकने में संधि की अक्षमता को रेखांकित करता है।
  • कथित भेदभाव: भारत जैसे राष्ट्र सीटीबीटी को भेदभावपूर्ण मानते हैं, उनका तर्क है कि यह परमाणु हथियार वाले राज्यों द्वारा निरस्त्रीकरण सुनिश्चित किए बिना प्रतिबंध लागू करता है।
  • सीमित दायरा: आलोचकों का तर्क है कि हालांकि सीटीबीटी परमाणु विस्फोटक परीक्षण पर प्रतिबंध लगाता है, लेकिन यह अन्य संबंधित गतिविधियों, जैसे कंप्यूटर सिमुलेशन या गैर-परमाणु विस्फोटक प्रयोगों को संबोधित नहीं करता है।

निष्कर्ष:

निगरानी और सत्यापन के लिए व्यापक ढांचे के साथ, CTBT परमाणु हथियारों के प्रसार को रोकने के वैश्विक प्रयासों में आधारशिला बना हुआ है। हालाँकि, इस संधि को वास्तव में अपने उद्देश्यों को साकार करने के लिए, इसे सार्वभौमिक पालन और अनुसमर्थन की आवश्यकता है। इसके सामने आने वाली चुनौतियाँ वैश्विक परमाणु राजनीति की जटिलताओं और अधिक समावेशी बातचीत की आवश्यकता को रेखांकित करती हैं, जिससे यह सुनिश्चित हो सके कि सभी देश संधि को निष्पक्ष और अपने सर्वोत्तम हित में समझें।

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