Q. ‘ भारत में कुपोषण अब खाद्यान्न की कमी की समस्या नहीं है, बल्कि खाद्य प्रणालियों का संकट है। ’ अल्पपोषण, अतिपोषण और प्रछन्न भूख की उभरती प्रवृत्तियों के आलोक में इस कथन की आलोचनात्मक जाँच कीजिए। (15 अंक, 250 शब्द)

प्रश्न की मुख्य माँग

  • चर्चा कीजिए कि भारत में कुपोषण अब खाद्यान्न की कमी की समस्या नहीं रह गई है, बल्कि अल्पपोषण, अतिपोषण और प्रच्छन्न भुखमरी की उभरती प्रवृत्तियों के आलोक में यह खाद्य प्रणाली का संकट बन गया है।
  • भारत में कुपोषण से निपटने के लिए समाधान सुझाइये।

उत्तर

भारत में कुपोषण की समस्या अब केवल खाद्यान्न की कमी तक सीमित नहीं है बल्कि व्यापक खाद्य प्रणाली की प्रणालीगत विफलता है। कुपोषण, अतिपोषण और प्रच्छन्न भुखमरी के उभरते पैटर्न एक साथ मौजूद हैं, जो खाद्य गुणवत्ता, जागरूकता और पहुँच समानता में गहरे मुद्दों को दर्शाते हैं।

भारत में कुपोषण, खाद्य प्रणालियों का संकट बन चुका है

कुपोषण

  • अपर्याप्त बाल विकास: खराब आहार सेवन और बार-बार होने वाले संक्रमण से शारीरिक और संज्ञानात्मक विकास में बाधा उत्पन्न होती है। 
    • उदाहरण: NFHS-5 (वर्ष 2019-21) के अनुसार, भारत में 5 वर्ष से कम आयु के 35.5% बच्चे अविकसित हैं।
  • उच्च एनीमिया दर: आयरन युक्त आहार और स्वास्थ्य सेवा तक पहुँच की कमी, प्रजनन आयु की महिलाओं में व्यापक एनीमिया को बढ़ावा देती है। 
    • उदाहरण: NFHS-5 के अनुसार 15-49 वर्ष की 57% महिलाएँ एनीमिया से पीड़ित हैं।
  • शिशु आहार की खराब प्रथाएँ: स्तनपान शुरू करने में देरी और अपर्याप्त स्तनपान, पोषण को प्रभावित करते हैं। 
    • उदाहरण: NFHS-5 से पता चलता है, कि भारत में केवल 63.7% शिशुओं को ही विशेष रूप से स्तनपान कराया जाता है।

अतिपोषण

  • वयस्कों में बढ़ता मोटापा: शहरी क्षेत्रों में गतिहीन जीवनशैली और प्रसंस्कृत खाद्य पदार्थों के सेवन से वजन बढ़ रहा है। 
    • उदाहरण: NFHS-5 के अनुसार 23% महिलाएँ और 22.1% पुरुष अधिक वजन या मोटापे से ग्रस्त हैं।
  • बचपन में अधिक वज़न में वृद्धि: खराब आहार विविधता के कारण बच्चों को कम और अधिक पोषण का दोहरा बोझ झेलना पड़ता है। 
    • उदाहरण: NFHS-5 की रिपोर्ट के अनुसार पांच वर्ष से कम आयु के 3.4% बच्चे ओवरवेट होने की समस्या का सामना करते हैं।
  • NCD में वृद्धि: अतिपोषण के कारण मधुमेह और हृदय संबंधी बीमारियों जैसी जीवनशैली से जुड़ी बीमारियों में वृद्धि हुई है। 
    • उदाहरण: लैंसेट के अनुसार, वर्ष 2017 में भारत में कुल मौतों में 26.6% मौतें हृदय संबंधी रोगों के कारण हुईं।

प्रच्छन्न भुखमरी

  • सूक्ष्म पोषक तत्वों की कमी: कैलोरी की पर्याप्तता के बावजूद, आहार में विटामिन A, जिंक और आयरन जैसे आवश्यक सूक्ष्म पोषक तत्वों की कमी होती है। 
    • उदाहरण: FSSAI ने प्रच्छन्न भुखमरी को रोकने के लिए चावल, गेहूं, तेल और दूध को फोर्टिफाइड करने का आदेश दिया है।
  • आहार में विविधता का अभाव: अनाज-प्रधान आहार में फल, सब्जियाँ और दालों की कमी होती है, जिससे पोषण असंतुलन होता है।
  • पोषण के प्रति जागरूकता का अभाव: जानकारी के अभाव के कारण आहार संबंधी गलत निर्णय लिए जाते हैं, विशेष रूप से ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में।

कुपोषण से निपटने के उपाय

  • सार्वजनिक खाद्य योजनाओं में विविधता लाना: PDS और मध्याह्न भोजन में मोटे अनाज और पोषक तत्वों से भरपूर खाद्य पदार्थ शामिल करने चाहिए
    • उदाहरण: ओडिशा के बाजरा मिशन ने बाजरे को सार्वजनिक वितरण प्रणाली और स्कूल भोजन में शामिल कर दिया है।
  • स्टेपल फोर्टिफिकेशन का विस्तार करना: आवश्यक पोषक तत्वों की उपलब्धता सुनिश्चित करने के लिए आमतौर पर खाए जाने वाले खाद्य पदार्थों को फोर्टिफाइड करना चाहिए।
    • उदाहरण: FSSAI का ईट राइट इंडिया अभियान सरकारी योजनाओं के माध्यम से फोर्टिफाइड चावल, तेल और नमक के वितरण को बढ़ावा देता है।
  • सामुदायिक पोषण शिक्षा: स्वस्थ भोजन और संतुलित आहार पर जागरूकता अभियान चलायें जाने चाहिए।
    • उदाहरण: पोषण माह प्रतिवर्ष ग्राम स्तरीय गतिविधियों के माध्यम से 10 करोड़ से अधिक लोगों तक पहुँचता है।
  • बाल पोषण कार्यक्रमों को उन्नत करना: बेहतर मात्रा, गुणवत्ता और विविधता के साथ ICDS और स्कूल भोजन को बेहतर बनाया जाना चाहिए।
    • उदाहरण: मिशन पोषण 2.0 के तहत सक्षम आंगनवाड़ी का उद्देश्य वितरण और बुनियादी ढाँचे में सुधार करना है।
  • प्रसंस्कृत खाद्य पदार्थों को विनियमित करना: पैकेट के सामने लेबलिंग अनिवार्य करना चाहिए और बच्चों के लिए उच्च शर्करा वाले खाद्य पदार्थों के विपणन को सीमित कर‌ देना चाहिए।
    • उदाहरण: FSSAI उच्च वसा, नमक, चीनी (HFSS) खाद्य पदार्थों के लिए चेतावनी लेबल को अंतिम रूप दे रहा है।

भारत में कुपोषण सिर्फ कमी नहीं बल्कि एक विखंडित खाद्य प्रणाली को दर्शाता है। कुपोषण, अतिपोषण और प्रच्छन्न भुखमरी के तिहरे बोझ के साथ, समाधान एक सही मायने में पोषण-सुरक्षित भारत बनाने के लिए सुधार, जागरूकता और पहुँच के बहुआयामी दृष्टिकोण में निहित है।

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