प्रश्न की मुख्य माँग
- भारत में सार्वजनिक स्वास्थ्य और फार्मास्युटिकल उद्योग पर अपर्याप्त नियामक निरीक्षण के प्रभाव का विश्लेषण कीजिए।
- चर्चा कीजिए कि नवाचार और विनियमन के बीच संतुलन कैसे प्राप्त किया जा सकता है।
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उत्तर
भारत के फार्मास्युटिकल क्षेत्र में अपर्याप्त विनियामक निगरानी ने सार्वजनिक स्वास्थ्य के संबंध में गंभीर चिंताएँ उत्पन्न कर दी हैं, जबकि भारत में इस उद्योग को ‘विश्व की फार्मेसी’ के रूप में जाना जाता है। खराब दवाएँ, अनैतिक व्यवहार और डेटा हेरफेर जैसे मुद्दों ने मजबूत विनियामक ढाँचे की आवश्यकता को उजागर किया है। फार्मास्युटिकल उन्नति को बढ़ावा देते हुए सार्वजनिक स्वास्थ्य की रक्षा के लिए विनियमन के साथ नवाचार को संतुलित करना आवश्यक है।
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अपर्याप्त नियामक निगरानी का प्रभाव
सार्वजनिक स्वास्थ्य पर
- खराब दवाओं का प्रसार: कमजोर निगरानी के कारण बाजार में नकली और खराब दवाएँ आ जाती हैं, जिससे लोगों की जान को खतरा होता है।
- उदाहरण के लिए: वर्ष 2022 में, WHO ने गाम्बिया में स्वास्थ्य समस्याएं उत्पन्न कर रही भारतीय खांसी की दवाइयों का नाम उजागर किया जो नियामक खामियों को दर्शाता है।
- एंटीबायोटिक प्रतिरोध: बिना डॉक्टर के पर्चे के एंटीबायोटिक्स सहित दवाओं की ओवर-द-काउंटर उपलब्धता, रोगाणुरोधी प्रतिरोध को बढ़ाती है।
- उदाहरण के लिए: ICMR की वर्ष 2020 की एक रिपोर्ट ने भारत में सेफलोस्पोरिन जैसी सामान्य एंटीबायोटिक दवाओं के लिए उच्च प्रतिरोध दर का संकेत दिया।
- सार्वजनिक स्वास्थ्य संकट: विनियामक विफलताओं के कारण व्यापक स्वास्थ्य संकट उत्पन्न होते हैं, जिनमें बड़े पैमाने पर विषाक्तता और प्रतिकूल दवा प्रतिक्रियाएँ शामिल हैं।
- आवश्यक दवाओं तक सीमित पहुँच: मूल्य नियंत्रण और गुणवत्ता मानकों के कमजोर प्रवर्तन से आम जनता के लिए किफायती, जीवन रक्षक दवाओं की उपलब्धता सीमित हो सकती है।
- उदाहरण के लिए: असंगत विनियामक निरीक्षण के कारण आवश्यक दवाओं की राष्ट्रीय सूची (NLEM) को कार्यान्वयन चुनौतियों का सामना करना पड़ता है, जिससे ग्रामीण क्षेत्रों में इंसुलिन जैसी आवश्यक दवाओं की कमी हो जाती है।
- स्वास्थ्य देखभाल संबंधी असमानताओं में वृद्धि: खराब विनियामक ढाँचे, स्वास्थ्य संबंधी असमानताओं को बढ़ा सकते हैं, विशेष रूप से कम सुविधा वाले या आर्थिक रूप से वंचित क्षेत्रों में।
- रोकथाम योग्य बीमारियों में वृद्धि: खाद्य और जल सुरक्षा मानकों की अपर्याप्त निगरानी से रोकथाम योग्य बीमारियों का प्रकोप हो सकता है।
- उदाहरण के लिए: वर्ष 2018 में हेपेटाइटिस C का प्रकोप, जो असुरक्षित सिरिंज और दूषित रक्त उत्पादों से जुड़ा था, बेहतर नियामक पर्यवेक्षण और प्रवर्तन से टाला जा सकता था।
फार्मास्युटिकल उद्योग की कार्यप्रणाली पर
- अनैतिक व्यवहार : निगरानी की कमी रिश्वतखोरी, झूठे विज्ञापन और अनधिकृत नैदानिक परीक्षणों जैसे कदाचार को बढ़ावा देती है।
- उदाहरण के लिए: रैनबैक्सी मामला, जिसमें कंपनी को दवा डेटा में हेराफेरी करने और अस्वीकृत उपयोगों के लिए दवाओं का विपणन करने हेतु दंड का सामना करना पड़ा, अपर्याप्त नियामक निगरानी के परिणामों को उजागर करता है।
- हानिकारक दवा स्वीकृतियाँ: विनियामक अंतराल, अपर्याप्त सुरक्षा और प्रभावकारी डेटा वाली दवाओं को स्वीकृति प्रदान करते हैं।
- उदाहरण के लिए: स्वास्थ्य विशेषज्ञों द्वारा सुरक्षा जोखिमों के लिए फिक्स्ड-डोज कॉम्बिनेशन दवाओं की अनियमित बिक्री का मामला उठाया गया है।
- मूल्य में हेरफेर और मुनाफाखोरी: अपर्याप्त निगरानी के कारण दवा कंपनियाँ दवा की कीमतों में हेरफेर कर पाती हैं, जिससे आम जनता के लिए आवश्यक दवाएँ अप्राप्य हो जाती हैं।
- उदाहरण के लिए: दवा मूल्य निर्धारण में अनियमितताओं के कारण महत्वपूर्ण दवाओं की कीमतें बहुत अधिक हो गईं, जिसके कारण सरकार को राष्ट्रीय दवा मूल्य निर्धारण प्राधिकरण (NPA) के माध्यम से मूल्य सीमा तय करने के लिए हस्तक्षेप करना पड़ा।
- जीवन रक्षक दवाओं की देरी से स्वीकृति: खराब विनियामक प्रणाली नई दवाओं की स्वीकृति प्रक्रिया को धीमा कर सकती है, जिससे महत्वपूर्ण उपचारों तक पहुँच में देरी हो सकती है।
- उदाहरण के लिए: भारत में कैंसर और ऑटोइम्यून बीमारियों के इलाज के लिए बायोसिमिलर की मंजूरी में देरी के कारण मरीजों को महंगी बायोलॉजिक्स के बजाय अधिक किफायती विकल्प नहीं मिल पाते हैं ।
- नैदानिक परीक्षणों में पारदर्शिता का अभाव: अपर्याप्त विनियामक निरीक्षण के कारण प्रतिकूल परीक्षण परिणामों में हेरफेर किया जाता है या उन्हें छुपाया जाता है, जिससे संभावित रूप से रोगियों को खतरा हो सकता है।
- उदाहरण के लिए: भारतीय चिकित्सा संघ (IMA) ने कई ऐसे उदाहरण बताए हैं जहाँ भारत में नई दवाओं के लिए नैदानिक परीक्षणों में रिपोर्टिंग की खराब प्रथाओं का पालन किया जा रहा था जिसके कारण संभावित दुष्प्रभावों के संबंध में अपर्याप्त जानकारी मिलती थी।
नवाचार और विनियमन में संतुलन
- विनियामक संस्थाओं को मजबूत बनाना: केंद्रीय औषधि मानक नियंत्रण संगठन (CDSCO) जैसे निकायों को आधुनिक बनाना और उन्हें उन्नत उपकरणों और प्रशिक्षित कर्मियों के साथ सशक्त बनाना चाहिये।
- उदाहरण के लिए: रियलटाइम में दवा की गुणवत्ता की जाँच के लिए डिजिटल निगरानी प्रणाली को अपनाने से, उत्पाद मानकों में निरंतरता और समस्याओं की त्वरित पहचान सुनिश्चित होती है।
- नैतिक नवाचार को प्रोत्साहित करना: नैतिक मानकों को लागू करते हुए अनुसंधान एवं विकास को प्रोत्साहित करने वाली नीतियों को लागू करना, जिम्मेदारी और सुरक्षा के साथ प्रगति को संतुलित करना।
- उदाहरण के लिए : सख्त अनुपालन के तहत बायोसिमिलर और वैक्सीन में निवेश करने वाली कंपनियों के लिए कर लाभ।
- पारदर्शिता बढ़ाना: पारदर्शिता बढ़ाने, जनता का विश्वास बनाने और अनुसंधान एवं स्वास्थ्य देखभाल क्षेत्रों में जवाबदेही सुनिश्चित करने के लिए नैदानिक परीक्षण डेटा के प्रकटीकरण को अनिवार्य बनाना ।
- औषधि अनुमोदन प्रक्रियाओं को कड़ा करना: नई औषधियों का कठोर परीक्षण और बाजार में आने के बाद उनकी निगरानी करनी चाहिए ।
- उद्योग सहयोग को बढ़ावा देना: नवाचार को सार्वजनिक स्वास्थ्य लक्ष्यों के साथ जोड़ने के लिए उद्योग, शिक्षा और विनियामकों के बीच साझेदारी को बढ़ावा देना चाहिए।
- उदाहरण के लिए: Covaxin के विकास में भारत बायोटेक, ICMR और CDSCO के बीच सहयोग किया गया था।
- वैश्विक बेंचमार्किंग: विश्व स्वास्थ्य संगठन के गुड मैन्युफैक्चरिंग प्रैक्टिसेज (GMP) जैसे अंतरराष्ट्रीय मानकों के साथ विनियामक ढाँचे को संरेखित करना चाहिए ।
- उदाहरण के लिए: भारत गुणवत्ता अनुपालन सुनिश्चित करने के लिए अमेरिकी FDA द्वारा उपयोग किए जाने वाले कड़े निरीक्षण मॉडल को अपना सकता है।
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फार्मास्यूटिकल क्षेत्र में भारत के नेतृत्व को बनाए रखते हुए सार्वजनिक स्वास्थ्य की सुरक्षा के लिए नवाचार और विनियमन के बीच संतुलन हासिल करना आवश्यक है। विनियामक ढाँचे को मजबूत करना, नैतिक नवाचार को प्रोत्साहित करना और वैश्विक संरेखण को सुविधाजनक बनाना एक प्रत्यास्थ प्रणाली का निर्माण कर सकता है, जो चिकित्सा क्षेत्र में सफलताओं को बढ़ावा देते हुए सार्वजनिक स्वास्थ्य चुनौतियों का समाधान कर सके।
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