Q. हाल के दिनों में कट्टरपंथी शासन के उदय को संबोधित करने में संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC) के प्रस्तावों की भूमिका का आकलन कीजिए। एक गैर-स्थायी सदस्य या आकांक्षी स्थायी सदस्य के रूप में भारत अपनी राष्ट्रीय सुरक्षा के संदर्भ में इन प्रस्तावों को कैसे प्रभावित कर सकता है? (15 अंक, 250 शब्द)

प्रश्न की मुख्य माँग

  • हाल के समय में कट्टरपंथी शासनों के उदय को संबोधित करने में संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC) के प्रस्तावों की सकारात्मक भूमिका का आकलन कीजिए।
  • हाल के समय में कट्टरपंथी शासनों के उदय को संबोधित करने में संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC) के प्रस्तावों की कमियों का आकलन कीजिए।
  • इस बात का परीक्षण कीजिए कि भारत, एक अस्थायी सदस्य या स्थायी सदस्य बनने की आकांक्षा रखने वाले सदस्य के रूप में, अपनी राष्ट्रीय सुरक्षा की रक्षा के लिए इन प्रस्तावों को कैसे प्रभावित कर सकता है।

उत्तर

संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC) वैश्विक शांति और सुरक्षा बनाए रखने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है, विशेषकर कट्टरपंथी शासनों के उदय का मुकाबला करने के उद्देश्य से अपने प्रस्तावों के माध्यम से। उदाहरण के लिए, जून 2023 में सर्वसम्मति से अपनाया गया संकल्प 2686,  अंतरराष्ट्रीय समुदाय से घृणा फैलाने वाले भाषण, नस्लवाद और उग्रवाद के कृत्यों की निंदा करने का आह्वान करता है और संघर्षों को भड़काने की उनकी क्षमता को दर्शाता है।

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संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के प्रस्तावों की सकारात्मक भूमिका

  • कानूनी ढाँचे की स्थापना: संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के प्रस्ताव आतंकवाद का मुकाबला करने के लिए कानूनी ढाँचे की स्थापना करते हैं और कट्टरपंथी शासनों के खिलाफ प्रतिबंधों और जवाबदेही तंत्रों के साथ वैश्विक अनुपालन सुनिश्चित करते हैं। 
    • उदाहरण के लिए: प्रस्ताव 1267 में अल-कायदा जैसे समूहों को लक्ष्य बनाया गया, उनकी सम्पत्तियों को जब्त किया गया तथा हथियारों तक पहुँच को प्रतिबंधित किया गया।
  • वैश्विक सहयोग का समर्थन: यह प्रस्ताव आतंकवाद और कट्टरपंथ से निपटने, खुफिया जानकारी साझा करने और संयुक्त कार्रवाई को बढ़ावा देने के लिए अंतर्राष्ट्रीय सहयोग हेतु एक मंच प्रदान करते हैं। 
    • उदाहरण के लिए: प्रस्ताव 2593 में अफगानिस्तान का उल्लेख किया गया, जिसमें तालिबान के कब्जे के बाद आतंकवाद का मुकाबला करने और अधिकारों की सुरक्षा के लिए प्रतिबद्धता सुनिश्चित की गई।
  • प्रतिबंध लगाना: प्रस्तावों के माध्यम से लक्षित प्रतिबंध, कट्टरपंथी शासनों को प्राप्त होने वाले धन और संसाधनों को रोकते हैं और उनकी परिचालन क्षमताओं पर अंकुश लगाते हैं। 
    • उदाहरण के लिए: प्रस्तावों ने ISIL से जुड़े व्यक्तियों पर प्रतिबंध लगाए और उनके वित्तीय नेटवर्क को कम किया।
  • मानवीय पहुँच को बढ़ावा देना: संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के प्रस्तावों में संघर्ष क्षेत्रों में मानवीय सहायता पहुँचाने का प्रावधान है, जिससे कट्टरपंथी शासन के तहत नागरिकों की पीड़ा कम हो। 
    • उदाहरण के लिए: सीरिया पर प्रस्तावों ने प्रभावित आबादी के लिए सीमा पार मानवीय सहायता की सुविधा प्रदान की।
  • आतंकवाद विरोधी प्रयासों को वैध बनाना: यह प्रस्ताव सदस्य देशों के आतंकवाद विरोधी उपायों को कानूनी वैधता प्रदान करते हैं और यह सुनिश्चित करते हैं कि कार्रवाई, अंतर्राष्ट्रीय कानूनों का पालन करें।
    • उदाहरण के लिए: UNSC ने अध्याय VII के तहत इराक और सीरिया में ISIL के खिलाफ़ ऑपरेशन को अधिकृत किया।

संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के प्रस्तावों की कमियाँ

  • प्रवर्तन का अभाव: सीमित संसाधनों या सदस्य देशों के बीच राजनीतिक इच्छाशक्ति की कमी के कारण प्रस्तावों को अक्सर खराब प्रवर्तन का सामना करना पड़ता है। 
    • उदाहरण के लिए: संकल्प 2593, तालिबान द्वारा महिलाओं के अधिकारों और आतंकवाद विरोधी प्रतिबद्धताओं का अनुपालन सुनिश्चित करने में विफल रहा।
  • राजनीतिक विभाजन: P-5 सदस्यों के भू-राजनीतिक हित अक्सर कट्टरपंथी शासन के खिलाफ निर्णायक कार्रवाई में बाधा डालते हैं। 
    • उदाहरण के लिए: चीन और रूस ने म्यांमार के सैन्य शासन के खिलाफ कड़े प्रतिबंधों को रोक दिया।
  • अपर्याप्त निगरानी: कमज़ोर निगरानी तंत्र प्रतिबंधों और प्रस्तावों की प्रभावशीलता को कमजोर करते हैं। 
    • उदाहरण के लिए: रिपोर्टों से पता चला है कि UNSC के आदेशों के बावजूद अफ़गानिस्तान में आतंकवादियों को लगातार वित्तीय मदद मिल रही है।
  • प्रमुख हितधारकों का बहिष्कार: क्षेत्रीय हित वाले कुछ देशों को निर्णय लेने की प्रक्रिया से बाहर रखा जाता है, जिससे समाधान के प्रभावी परिणाम नहीं मिलते हैं। 
    • उदाहरण के लिए: वर्ष 2021 में अफगानिस्तान पर “ट्रोइका प्लस” चर्चाओं में भारत को दरकिनार कर दिया गया ।
  • प्रतिक्रियात्मक दृष्टिकोण:  संकल्प अक्सर संकट के बाद प्रतिक्रिया पर केंद्रित हैं, न कि कट्टरपंथ के शुरुआती चेतावनी संकेतों का समाधान करते हैं। 
    • उदाहरण के लिए: UNSC ने तालिबान के उदय के बाद कार्रवाई की, न कि उनके फिर से उभरने को रोकने के लिए।

अस्थायी/आकांक्षी सदस्य के रूप में भारत की भूमिका

  • समावेशी दृष्टिकोण की वकालत करना: यह सुनिश्चित करते हुए कि क्षेत्रीय हितधारकों की चिंताओं को शामिल किया जाए, भारत समावेशी निर्णय लेने पर बल दे सकता है।
    • उदाहरण के लिए: भारत ने संकल्प 2593 में इस बात पर बल दिया कि अफगानिस्तान की धरती का इस्तेमाल आतंकवाद के लिए नहीं किया जाना चाहिए।
  • जवाबदेही को बढ़ावा देना: भारत, प्रस्तावों को प्रभावी ढंग से लागू करने के लिए कड़े अनुपालन उपायों और नियमित समीक्षा की माँग कर सकता है।
    • उदाहरण के लिए: भारत ने UNSC 1267 प्रतिबंधों के तहत पाकिस्तान स्थित समूहों को सूचीबद्ध करने का आग्रह किया।
  • आतंकवाद विरोधी मानदंडों को मजबूत करना: भारत वैश्विक स्तर पर आतंकवादियों के वित्तपोषण और सुरक्षित पनाहगाहों पर अंकुश लगाने के लिए मजबूत मानदंडों की वकालत कर सकता है। 
    • उदाहरण के लिए: भारत ने सीमा पार आतंकवाद का मुकाबला करने के लिए UNSC में पहल की।
  • धर्म-विरोध को उजागर करना: भारत धर्म-विरोध जैसे मुद्दों को उजागर कर सकता है, तथा चरमपंथ से निपटने के लिए व्यापक दृष्टिकोण सुनिश्चित कर सकता है।
  • राजनयिक नेटवर्क का लाभ उठाना: भारत अपने G20 और BRICS नेतृत्व की भूमिका का उपयोग, व्यापक गठबंधनों को UNSC प्राथमिकताओं के साथ संरेखित करने के लिए कर सकता है। 
    • उदाहरण के लिए: भारत ने UNSC प्रस्तावों में आतंकवादी समूहों को स्पष्ट रूप से शामिल करने के लिए अमेरिका के साथ समन्वय किया।

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संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में भारत की सक्रिय भागीदारी, चाहे वह अस्थायी सदस्य हो या स्थायी सदस्य बनने की आकांक्षा रखने वाला , उसे कट्टरपंथी शासनों से निपटने वाले प्रस्तावों को प्रभावित करने में सक्षम बनाती है। भारत जैसे देशों को शामिल करने के लिए स्थायी सदस्यता का विस्तार करने जैसे सुधारों की वकालत करके, संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद समकालीन वैश्विक वास्तविकताओं को बेहतर ढंग से प्रतिबिंबित कर सकती है और अंतर्राष्ट्रीय शांति व सुरक्षा सुनिश्चित करने में अपनी प्रभावशीलता को बढ़ा सकती है।

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