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Q. भारतीय ऑटोमोबाइल उद्योग में मंदी के लिए मुख्य कारक क्या हैं? भारत सरकार और ऑटोमोबाइल निर्माता इन चुनौतियों का समाधान कैसे कर सकते हैं ताकि इस क्षेत्र में वृद्धि को पुनः गति प्रदान की जा सके? (15 अंक, 250 शब्द)

प्रश्न की मुख्य माँग

  • भारतीय ऑटोमोबाइल उद्योग में मंदी के लिए योगदान देने वाले प्राथमिक कारकों पर चर्चा कीजिये।
  • परीक्षण कीजिये कि भारत सरकार अपने विकास को गति देने के लिए इन चुनौतियों का समाधान कैसे कर सकती है?
  • जाँच करें कि ऑटोमोबाइल निर्माता अपनी वृद्धि को गति देने के लिए इन चुनौतियों का समाधान कैसे कर सकते हैं।

 

उत्तर:

भारतीय ऑटोमोबाइल उद्योग, देश की GDP (7.1%) एवं रोजगार में प्रमुख योगदानकर्ता है, जो आर्थिक विकास तथा तकनीकी नवाचार में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। इसके योगदान के बावजूद, यह क्षेत्र आर्थिक चुनौतियों, वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला व्यवधानों एवं नीतिगत परिवर्तनों सहित कारकों के संयोजन के कारण मंदी का सामना कर रहा है, जिसके विकास को गति देने के लिए सरकार तथा निर्माताओं दोनों के व्यापक प्रयासों की आवश्यकता है।

भारतीय ऑटोमोबाइल उद्योग में मंदी में योगदान देने वाले प्राथमिक कारक

  • उपभोक्ता माँग का कम होना: उपभोक्ता खर्च में मंदी के कारण वाहन बिक्री में उल्लेखनीय गिरावट आई है, विशेषकर मध्यम आय वर्ग में। 
    • उदाहरण के लिए: FADA (2024) के अनुसार, भारत भर में 800,000 कारों की ब्रिक्री ही नहीं हुई, जिनकी इन्वेंट्री वैल्यू ₹77,000 करोड़ है, जो छूट के साथ भी कम माँग का संकेत देती है।
  • वित्तपोषण में तरलता की कमी: NBFC संकट ने आसान वाहन वित्तपोषण की उपलब्धता को कम कर दिया है, जिसने संभावित खरीदारों को निराश किया है, विशेषकर ग्रामीण क्षेत्रों में। 
    • उदाहरण के लिए: वर्ष 2018 के बाद NBFC संकट के कारण ऑटो ऋण में भारी गिरावट आई, जिसका सीधा असर शहरी एवं ग्रामीण दोनों बाजारों में बिक्री पर पड़ा।
  • उच्च ईंधन कीमतें: ईंधन की कीमतों में लगातार बढ़ोतरी ने वाहनों की खरीद को हतोत्साहित किया है, विशेषकर ट्रकिंग एवं सार्वजनिक परिवहन जैसे वाणिज्यिक क्षेत्रों में। 
    • उदाहरण के लिए: यूक्रेन युद्ध के बाद वैश्विक तेल की कीमतों में वृद्धि ने ईंधन की लागत को और बढ़ा दिया है, जिससे वाणिज्यिक वाहनों की माँग कम हो गई है।
  • BS-VI मानकों में बदलाव: BS-IV से BS-VI उत्सर्जन मानदंडों में बदलाव से वाहन की कीमतें बढ़ गई हैं, जिससे उपभोक्ताओं पर अधिक लागत का बोझ पड़ रहा है।
    • उदाहरण के लिए: BS-VI मानदंड लागू होने के कारण यात्री कारों की कीमत में 10-15% की वृद्धि हुई, जिससे किफायती खंड में बिक्री प्रभावित हुई।
  • सेमीकंडक्टर की कमी: वैश्विक सेमीकंडक्टर की कमी, मुख्य रूप से COVID-19 एवं आपूर्ति श्रृंखला व्यवधानों के कारण, ने भारत में वाहन उत्पादन को काफी प्रभावित किया है। 
    • उदाहरण के लिए: मारुति सुजुकी जैसे प्रमुख निर्माताओं को उत्पादन में रुकावट का सामना करना पड़ा, जिससे प्रतीक्षा अवधि लंबी हो गई एवं वाहनों की उपलब्धता कम हो गई।
  • साझा गतिशीलता की ओर बदलाव विशेष रूप से शहरी क्षेत्रों में ओला एवं उबर जैसी राइड-शेयरिंग सेवाओं की लोकप्रियता के कारण निजी वाहन स्वामित्व की इच्छा में गिरावट आई है। 
  • बढ़ती इनपुट लागत स्टील, एल्यूमीनियम एवं रबर जैसे आवश्यक कच्चे माल की लागत बढ़ गई है, जिससे वाहन की कीमतें और बढ़ गई हैं।

भारत सरकार विकास को गति देने के लिए इन चुनौतियों का समाधान कैसे कर सकती है

  • कर सुधार: ऑटोमोबाइल, विशेष रूप से दोपहिया वाहनों एवं प्रवेश स्तर की कारों पर GST दरों को कम करने से मध्यम आय वाले खरीदारों के लिए वाहन अधिक किफायती हो सकते हैं। 
    • उदाहरण के लिए: ऑटोमोबाइल क्षेत्र में माँग को प्रोत्साहित करने के लिए 28% की वर्तमान GST दर को घटाकर 18% किया जा सकता है।
  • इलेक्ट्रिक वाहनों (EV) के लिए प्रोत्साहन: इलेक्ट्रिक वाहन अपनाने को बढ़ावा देने के लिए FAME II के तहत प्रोत्साहन के दायरे का विस्तार करने से हरित प्रौद्योगिकियों में माँग एवं निवेश दोनों को बढ़ावा मिल सकता है। 
    • उदाहरण के लिए: FAME II योजना EV खरीदारों के लिए सब्सिडी प्रदान करती है, जिससे इलेक्ट्रिक दोपहिया वाहनों की माँग बढ़ जाती है।
  • ऋण उपलब्धता को बढ़ावा देना: ग्रामीण एवं मध्यम वर्ग के खरीदारों के लिए वाहन वित्तपोषण तक पहुँच बढ़ाने के लिए सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के साथ साझेदारी से माँग बढ़ सकती है। 
    • उदाहरण के लिए: सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के माध्यम से विशेष कम ब्याज वाली ऋण योजनाएँ इस क्षेत्र में ऋण संकट को कम कर सकती हैं।
  • EV इंफ्रास्ट्रक्चर में निवेश: EV चार्जिंग स्टेशनों एवं बैटरी विनिर्माण संयंत्रों के विकास में तेजी लाने से जीवाश्म ईंधन पर निर्भरता कम हो जाएगी तथा स्वच्छ वाहनों की ओर बदलाव को बढ़ावा मिलेगा। 
    • उदाहरण के लिए: बैटरी निर्माण के लिए PLI योजना से आयातित घटकों पर निर्भरता कम होने एवं घरेलू उत्पादन को बढ़ावा मिलने की उम्मीद है।
  • अनुसंधान एवं विकास पहल को मजबूत करना: वैकल्पिक ईंधन एवं इलेक्ट्रिक वाहनों जैसे क्षेत्रों में अनुसंधान तथा विकास के लिए सरकारी समर्थन बढ़ाने से नवाचार को बढ़ावा मिल सकता है एवं विनिर्माण लागत कम हो सकती है। 
    • उदाहरण के लिए: हरित हाइड्रोजन पर सरकार का ध्यान वाहन ईंधन के भविष्य में क्रांति ला सकता है।

कैसे ऑटोमोबाइल निर्माता विकास को गति प्रदान करने के लिए इन चुनौतियों का समाधान कर सकते हैं?

  • किफायती EV मॉडल विकसित करना: निर्माताओं को बजट के प्रति जागरूक खरीदारों को पूरा करने एवं EV के लिए सरकारी प्रोत्साहन का लाभ उठाने के लिए किफायती इलेक्ट्रिक वाहन बनाने पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए। 
    • उदाहरण के लिए: टाटा मोटर्स ने टाटा नेक्सॉन EV जैसे बजट-अनुकूल EV को सफलतापूर्वक लॉन्च किया है, जिससे इस सेगमेंट में बिक्री बढ़ी है।
  • सेमीकंडक्टर के स्थानीय विनिर्माण को बढ़ाना: घरेलू सेमीकंडक्टर विनिर्माण को विकसित करने के लिए सरकार के साथ सहयोग करने से उत्पादन को स्थिर करने एवं आयात पर निर्भरता कम करने में मदद मिल सकती है। 
    • उदाहरण के लिए: महिंद्रा ने वैश्विक आपूर्ति बाधाओं को दूर करने के लिए स्थानीय चिप-निर्माण साझेदारी में निवेश किया है।
  • सार्वजनिक-निजी भागीदारी (PPP) का लाभ उठाना: EV चार्जिंग स्टेशनों जैसे बुनियादी ढाँचे के विकास के लिए PPP मॉडल में सरकार के साथ सहयोग करने से विकास में तेजी आ सकती है। 
    • उदाहरण के लिए: हीरो इलेक्ट्रिक पूरे भारत में चार्जिंग स्टेशन स्थापित करने के लिए BPCL के साथ कार्य कर रही है।
  • टियर-2 एवं टियर-3 शहरों में बिक्री का विस्तार: निर्माताओं को टियर-2 एवं टियर-3 शहरों में मजबूत नेटवर्क बनाने पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए, जहाँ निजी वाहनों की माँग अधिक रहती है। 
  • लागत-कुशल विनिर्माण प्रथाएँ लीन विनिर्माण तकनीकों को अपनाने एवं स्वचालन में निवेश करने से उत्पादन लागत कम हो सकती है, जिससे वाहन उपभोक्ताओं के लिए अधिक किफायती हो सकते हैं।
    • उदाहरण के लिए: बजाज ऑटो ने अपने दोपहिया वाहन खंड में सामर्थ्य बनाए रखने के लिए उत्पादन प्रक्रियाओं को सुव्यवस्थित किया है।

भारतीय ऑटोमोबाइल उद्योग को गति देने के लिए सरकार एवं निर्माताओं के बीच उपभोक्ता प्रोत्साहन, EV अपनाने तथा लागत-कुशल उत्पादन पर ध्यान केंद्रित करने के लिए एक सहयोगात्मक प्रयास की आवश्यकता है। नीतिगत हस्तक्षेपों के साथ-साथ वित्तीय एवं आपूर्ति श्रृंखला चुनौतियों का समाधान करके, भारत अपने ऑटोमोबाइल क्षेत्र को निरंतर विकास की ओर ले जा सकता है, जिससे पारंपरिक तथा इलेक्ट्रिक गतिशीलता दोनों बाजारों में एक वैश्विक हितधारक के रूप में अपनी भूमिका सुनिश्चित हो सकती है।

 

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