अधीनस्थ न्यायालय (भाग VI; अनुच्छेद 233-237) (उड़ान) # |
राज्य न्यायपालिका = उच्च न्यायालय + अधीनस्थ न्यायालय
जिला न्यायाधीश की नियुक्ति | राज्यपाल द्वारा राज्य के उच्च न्यायालय के परामर्श से नियुक्त किया जाता है।
योग्यताएं:
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अन्य नियुक्तियां (जिला न्यायाधीश के अतिरिक्त) | राज्य लोक सेवा आयोग और उच्च न्यायालय के परामर्श के बाद राज्यपाल द्वारा नियुक्त किया जाता है। |
अधीनस्थ न्यायालयों पर नियंत्रण | उच्च न्यायालय द्वारा |
जिला न्यायाधीश | जिला न्यायाधीश के अंतर्गत: नगर दीवानी न्यायाधीश + अपर जिला न्यायाधीश + संयुक्त जिला न्यायाधीश + सहायक जिला न्यायाधीश + लघु न्यायालय का मुख्य न्यायाधीश + मुख्य प्रेसिडेंसी मजिस्ट्रेट + अतिरिक्त मुख्य प्रेसिडेंसी मजिस्ट्रेट + सत्र न्यायाधीश + अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश + सहायक सत्र न्यायाधीश आते हैं। |
न्यायिक सेवाएं | न्यायिक सेवा में वे अधिकारी आते हैं जो जिला न्यायाधीश एवं उससे नीचे के न्यायिक पदों से संबन्धित होते हैं। |
संरचना एवं अधिकार क्षेत्र |
राष्ट्रीय कानूनी सेवा प्राधिकरण |
- अनुच्छेद 39A (DPSP) – समाज के कमजोर वर्गों के लिए निःशुल्क कानूनी सहायता का प्रावधान करता है, और सबके लिए न्याय सुनिश्चित करता है।
- अनुच्छेद 14 और 22(1)– राज्य के लिए यह बाध्यकारी बनाता है, कि वह कानून के समक्ष समानता सुनिश्चित करने के साथ ही एक ऐसी कानूनी प्रणाली स्थापित करें जो सबके लिए समान अवसर के आधार पर न्याय का संवर्धन करें।
- 1987– में कानूनी सेवा प्राधिकरण अधिनियम संसद द्वारा अधिनियमित किया गया àजो कि 9 नवंबर, 1995 से लागू हुआ।
- नालसा(NALSA): कानूनी सहायता कार्यक्रमों के कार्यान्वयन की निगरानी और मूल्यांकन करने के लिए + देशभर में अधिनियम के तहत कानूनी सेवाएं उपलब्ध कराने के लिए नीति और सिद्धांत + हर राज्य में राज्य कानूनी सेवा प्राधिकरण।
- कार्य: योग्य लोगों को मुफ्त और सक्षम कानूनी सेवाएं प्रदान करना + लोक अदालत का आयोजन करना + कानूनी जागरूकता शिविरों का आयोजन करना।
लोक अदालत: |
- पूर्व मुकदमेबाजी के चरण + गांधीवादी सिद्धांतों पर आधारित + ए.डी.आर. (वैकल्पिक विवाद निवारण) के घटक में से एक + अनौपचारिक, सस्ता, शीघ्र + प्रथम लोक अदालत – 1982 में गुजरात में स्थापित किया गया।
वैधानिक सेवाएं प्राधिकरण अधिनियम, 1987 के अनुसार : राज्य वैधानिक सेवा प्राधिकरण या जिला वैधानिक सेवा प्राधिकरण या सर्वोच्च न्यायालय वैधानिक सेवा समिति या उच्च न्यायालय वैधानिक सेवा समिति या तालुक कानूनी सेवाएं लोक अदालत का आयोजन कर सकती हैं।
- प्रत्येक अदालत में ऐसी कई सेवारत या सेवानिवृत्त न्यायिक अधिकारी और क्षेत्र के अन्य व्यक्ति होते हैं जो निकाय द्वारा निर्दिष्ट किए जा सकते हैं।
- लोक अदालत के पास यह अधिकार होगा की वह निम्नलिखित विवादों में दोनों पक्षों के बीच समझौता कराने का निश्चय करें:
- कोई भी मामला जो किसी न्यायालय में लंबित हो, या
- कोई भी मामला जो किसी भी न्यायालय के अधिकार क्षेत्र में आता हो लोक अदालत के समक्ष नहीं लाया जाएगा।
- गैर-समाधेय अपराधों के लिए कोई अधिकार क्षेत्र नहीं प्राप्त है।
- समान शक्ति,जैसा कि सिविल कोर्ट और आपराधिक अदालत में सिविल प्रक्रिया और आपराधिक प्रक्रिया के तहत निहित होती है।
- लोक अदालत का फैसला = दीवानी न्यायालय का फरमान/किसी न्यायालय का आदेश
- इसका निर्णय गैर-अपीलीय होता है।
स्थाई लोक अदालत |
- कानूनी सेवा प्राधिकरण अधिनियम, 1987 à 2002 स्थाई लोक अदालतों की स्थापना प्रावधान करता है।
- विशेषताएं:
- अध्यक्ष: जो कि जिला न्यायाधीश या अतिरिक्त जिला न्यायाधीश रहा हो अथवा जिला न्यायाधीश से भी उच्चतर श्रेणी के न्यायिक सेवा में रहा हो।
- एक या अधिक उपयोगिता सेवाएं (परिवहन, टेलीफोन सेवा आदि) इसके अधिकार क्षेत्र के अंतर्गत होगी।
- आर्थिक क्षेत्राधिकार – 10 लाख तक
- कोई अधिकार क्षेत्र नहीं – वैसे मामले जो कानून के समक्ष समाधेय नहीं है।
- फैसले: अंतिम और बाध्यकारी होती है।
परिवार न्यायालय |
- परिवार न्यायालय अधिनियम 1984 à विवाह और पारिवारिक मुद्दों से संबंधित वादों में मध्यस्थता एवं त्वरित समाधान सुनिश्चित करने के लिए स्थापित किया गया।
- विशेषतायें:
- यह राज्य सरकारों द्वारा उच्च न्यायालय की सहमति से परिवार न्यायालय की स्थापना का प्रावधान करता है।
- यह राज्य सरकारों के लिए एक लाख से अधिक जनसंख्या वाले प्रत्येक नगर में एक परिवार न्यायालय की स्थापना को बाध्यकारी बनाता है।
- यह राज्य सरकारों को अन्य क्षेत्रों में भी परिवार न्यायालय स्थापित करने में समर्थ बनाता है।
- विशिष्ट अधिकार क्षेत्र: विवाह संबंधी राहत + पति / पत्नी की संपत्ति + एक व्यक्ति की वैधता की घोषणा + किसी व्यक्ति का अभिभावक या किसी भी नाबालिग का संरक्षक + पत्नी, बच्चों और माता-पिता का गुजारा–भत्ता।
- पारिवारिक न्यायालय के लिए यह अनिवार्य है कि वह प्रथम तक किसी पारिवारिक विवाद में संबंधित पक्षों के बीच मेल–मिलाप या समझौते का प्रयास करें।
- विधि विशेषज्ञ द्वारा प्रतिनिधित्व करने का कोई अधिकार नहीं होगा।
- यह केवल एक अपील का अधिकार देता है जो उच्च न्यायालय में ही की जा सकती है।