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राज्य के नीति-निदेशक तत्व (उड़ान)

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राज्य के नीति-निदेशक तत्व (उड़ान) #

  • भारतीय संविधान में राज्य के नीति-निदेशक तत्वों(डीपीएसपी) की संकल्पना को 1937 में निर्मित आयरलैंड के संविधान से लिया गया है।
  • डॉ. बी.आर. अम्बेडकर: राज्य के नीति-निदेशक तत्व = भारतीय संविधान की अनोखी विशेषताएँ
  • ग्रेनविल ऑस्टिन: डीपीएसपी + एफआर = संविधान की मूल आत्मा

· डीपीएसपी + एफआर = संविधान की दर्शन और आत्मा· भाग IV; अनुच्छेद 36 से 51

  • नीति-निदेशक तत्व राज्य पर नैतिक बाध्यता आरोपित करते हैं।
  • नीति-निदेशक तत्व सामाजिक-आर्थिक लोकतंत्र को स्थापित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। इनकी प्रकृति सकारात्मक है, जबकि मूल अधिकारों की प्रकृति नकारात्मक है।
  • राज्य के नीति-निदेशक तत्व, मूल अधिकारों के पूरक हैं। उनका उद्देश्य भाग-3 (मूल अधिकार) में अनुपस्थित सामाजिक और आर्थिक अधिकारों की प्रतिपूर्ति करना है।

 

गोलकनाथ बनाम पंजाब राज्य मामला (1967) नीति-निदेशक तत्वों को लागू करने हेतु मूल अधिकारों में संशोधन नहीं किया जा सकता है।
मिनेर्वा मिल्स केस (1980) मूल अधिकार और डीपीएसपी के बीच सामंजस्य और संतुलन भारतीय संविधान की आधारशिला(Bedrock) है। दोनों एक-दूसरे के पूरक हैं।

 

  • सर बी.एन. राव (संविधान सभा के संवैधानिक सलाहकार) ने सिफारिश की थी कि वैयक्तिक अधिकारों को दो श्रेणियों में विभाजित किया जाना चाहिए- न्यायोचित और गैर- न्यायोचित, जिसे प्रारूप समिति द्वारा स्वीकार कर लिया गया था।

 

डीपीएसपी की विशेषताएँ
  • विधायी, कार्यकारी और प्रशासनिक मामलों में राज्य को संवैधानिक निर्देश या सिफारिशें।
  • निदेशक तत्व भारत शासन अधिनियम,1935 में उल्लिखित अनुदेशों के समान हैं।
  • डीपीएसपी एक आधुनिक लोकतांत्रिक राज्य में आर्थिक, सामाजिक और राजनीतिक विषयों हेतु महत्वपूर्ण हैं।
  • डीपीएसपी ‘लोक कल्याणकारी राज्य’ का निर्माण कराते हैं, ना कि पुलिस राज्य का।·
  • डीपीएसपी का उद्देश्य संविधान की प्रस्तावना में उल्लिखित न्याय, स्वतंत्रता, समानता और बंधुत्व को साकार करना है।
  • डीपीएसपी गैर- न्यायोचित या वाद योग्य नहीं हैं, अर्थात इन्हें लागू करवाने हेतु या इनके उल्लंघन पर अदालत में वाद दायर नहीं किया जा सकता है।
  • डीपीएसपी किसी कानून की संवैधानिक वैधता की जांच और निर्धारण करने में अदालतों की मदद करते हैं।
  • उच्चतम न्यायालय : यदि कोई कानून नीति-निदेशक तत्वों को लागू करता है तो उसे मूल अधिकारों के अनुच्छेद 14 और 19 के साथ तर्कसंगत होना चाहिए।

 

डीपीएसपी का वर्गीकरण

· भारतीय संविधान में राज्य के नीति-निदेशक तत्वों(डीपीएसपी) का वर्गीकरण नहीं किया गया है। लेकिन विद्वानों ने सामान्य तौर पर इन्हें तीन व्यापक श्रेणियों में वर्गीकृत किया है- समाजवादी, गांधीवादी और उदार-बौद्धिक ।

 

1. समाजवादी
  • इस वर्ग के डीपीएसपी, समाजवाद की विचारधारा से प्रेरित हैं तथा लोकतांत्रिक समाजवादी राज्य का खाका खींचते हैं। इनका लक्ष्य सामाजिक और आर्थिक न्याय प्रदान करना है।

 

अनुच्छेद विवरण
 

अनुच्छेद 38

  • राज्य, सामाजिक व्यवस्था में लोक कल्याण की अभिवृद्ध हेतु सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक न्याय सुनिश्चित करेगा। इसके अलावा, आय की असमानताओं को कम करने का प्रयास करेगा और प्रतिष्ठा, सुविधाओं व अवसरों की असमानता को भी कम करेगा (44वें संविधान संशोधन,1978 द्वारा जोड़ा गया)।
 

 

 

अनुच्छेद 39

  • राज्य की नीति को आजीविका के पर्याप्त साधनों को सुरक्षित करना चाहिए।·
  • सभी के बीच संसाधनों का समान वितरण।
  • धन और उत्पादन के साधनों के सकेंद्रण को रोकना।
  • पुरुषों और महिलाओं के लिए समान काम के लिए समान वेतन।
  • श्रमिकों की शक्ति व बच्चों की सुकुमार अवस्था का दुरुपयोग ना हो।
  • आर्थिक विवशता के कारण नागरिकों को ऐसे रोजगार में न जाना पड़े जो उनकी आयु व शक्ति के अनुरूप न हो।
  • बच्चों के स्वस्थ विकास का अवसर (42 वाँ संशोधन)।
अनुच्छेद 39A समान न्याय को बढ़ावा देना और गरीबों को मुफ्त कानूनी सहायता प्रदान करना(42 वां संशोधन)।
अनुच्छेद 41 बेरोजगारी, वृद्धावस्था, बीमारी की स्थिति में कार्य, शिक्षा और सार्वजनिक सहायता का अधिकार।
अनुच्छेद 42 काम(work) की न्यायसंगत और मानवोचित दशाओं का प्रावधान।
अनुच्छेद 43 कर्मकारों के लिए निर्वाह योग्य मजदूरी, शिष्ट जीवन स्तर, अवकाश का उपयोग सुनिश्चित करने वाली कार्य दशाएँ, सामाजिक और सांस्कृतिक अवसर को सुनिश्चित करना।
अनुच्छेद 43A उद्योगों के प्रबंधन में कामगारों का भाग लेना (42 वें संविधान संशोधन)
अनुच्छेद 47 पोषाहार स्तर और जीवन स्तर को ऊँचा करने तथा लोक स्वास्थ्य का सुधार करने का राज्य का कर्तव्य

 

  1. गांधीवादी

डीपीएसपी का यह वर्ग गांधीवादी विचारधारा पर आधारित है। ये महात्मा गांधी द्वारा राष्ट्रीय आंदोलन के दौरान पुनर्निर्माण के कार्यक्रम का प्रतिनिधित्व करते हैं।

अनुच्छेद विवरण
अनुच्छेद 40 ग्राम पंचायतों का संगठन (जमीनी स्तर पर लोकतंत्र स्थापित करना)।
अनुच्छेद 43 ग्रामीण क्षेत्रों में वैयक्तिक एवं सहकारी आधार पर कुटीर उद्योगों को बढ़ावा देना।
अनुच्छेद 43B सहकारी समितियों के स्वैच्छिक गठन, स्वायत्त संचालन, लोकतांत्रिक नियंत्रण और पेशेवर प्रबंधन को बढ़ावा देना (97 वें संशोधन, 2011)
अनुच्छेद 46 एससी, एसटी और समाज के अन्य कमजोर वर्गों के शैक्षिक और आर्थिक हितों को बढ़ावा देने के लिए + उन्हें सामाजिक अन्याय और शोषण से बचाने के लिए।
अनुच्छेद 47 मादक पेय और नशीले पदार्थों का सेवन प्रतिबंधित करें
अनुच्छेद 48 गायों व बछड़ों तथा अन्य दुधारू एव वाहक पशुओं के वध पर रोक लगाएं और उनकी नस्लों में सुधार करें ।

 

  1. उदार-बौद्धिक सिद्धांत

 

अनुच्छेद विवरण
अनुच्छेद 44 नागरिकों के लिए एक समान सिविल संहिता ।
अनुच्छेद 45 राज्य प्रारम्भिक शैशवावस्था की देखरेख और सभी बालकों को उस समय तक जब तक कि वे छः वर्ष की आयु न पूर्ण कर लें, शिक्षा प्रदान करने के लिए प्रयास करेगा(86वें संशोधन, 2002)|
अनुच्छेद 48 आधुनिक और वैज्ञानिक तर्ज पर कृषि और पशुपालन को व्यवस्थित करना।
अनुच्छेद 48A पर्यावरण का संरक्षण तथा संवर्धन और वन तथा वाणी जीवों की रक्षा(42वें संशोधन 1976)।
अनुच्छेद 49 राष्ट्रीय महत्व के संस्मारकों, स्थानों और वस्तुओं का संरक्षण।
अनुच्छेद 50 कार्यपालिका से न्यायपालिका का पृथक्करण।
अनुच्छेद 51 राज्य अंतर्राष्ट्रीय शांति व सुरक्षा की अभिवृद्ध ,राष्ट्रों के बीच सम्मानजनक संबंध बनाए रखने, अंतर्राष्ट्रीय कानूनों और संधि दायित्वों का सम्मान बढ़ाने और अंतर्राष्ट्रीय विवादों के माध्यस्थम(Arbitration) द्वारा समाधान करने का प्रयास करेगा।

 

भाग IV से अतिरिक्त निदेश

 

अनुच्छेद 335 भाग XVI सेवाओं और पदों के लिए अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के दावे।
अनुच्छेद 350A भाग XVII प्राथमिक स्तर पर मातृभाषा में शिक्षा की सुविधाएं।
अनुच्छेद 351 भाग XVII हिंदी भाषा के विकास के लिए निदेश।

 

मूल अधिकारों एवं नीति-निदेशक तत्वों में टकराव

 

सुप्रीम कोर्ट मामले उच्चतम न्यायालय की राय
चंपकम दोराईराजन मामला, 1951
  • यदि एफआर और डीपीएसपी के बीच कोई संघर्ष होता है, तो मूल अधिकार को डीपीएसपी पर वरीयता दी जाएगी।
  • संवैधानिक संशोधन के माध्यम से संसद डीपीएसपी में संशोधन कर सकती है।
गोलकनाथ मामला, 1967
  • डीपीएसपी के कार्यान्वयन के लिए मूल अधिकार में संशोधन नहीं किया जा सकता है।
 

 

24वाँ संविधान संशोधन, 1971

  • संसद संवैधानिक संशोधन द्वारा किसी भी मूल अधिकार में संशोधन कर सकती है।
  • अनुच्छेद 31C को शामिल किया किया गया- नीति-निदेशक तत्वों के अनुच्छेद 39(B) और अनुच्छेद 39(c) को लागू करने हेतु बनाए गए कानून को मूल अधिकारों के अनुच्छेद 14,19 एवं 31 के उल्लंघन के आधार पर चुनौती नहीं दी जाएगी। · इस प्रकार संसद ने संविधान संशोधन करके नीति-निदेशक तत्वों को दो मूल अधिकारों (अनुच्छेद 14 एवं अनुच्छेद 19) पर वरीयता दी।· नीति-निदेशक तत्वों को लागू करने हेतु बनाई गई विधि को न्यायपालिका में चुनौती नहीं दी जा सकती है।
केसवानंद भारती मामला, 1973
  • संसद द्वारा 24वें संविधान संशोधन के उस प्रावधान को शून्य व असंवैधानिक घोषित कर दिया, जिसमें कहा गया था कि नीति-निदेशक तत्वों को लागू करने हेतु बनाई गई, विधि को न्यायपालिका में चुनौती नहीं दी जा सकती है। न्यायिक समीक्षा संविधान की मूल संरचना का हिस्सा है।
42वाँ संशोधन, 1976
  • किसी भी डीपीएसपी के कार्यान्वयन के लिए कोई भी कानून शून्य नहीं होगा यदि यह अनुच्छेद14 और अनुच्छेद19 का उल्लंघन करता है। डीपीएसपी को अनुच्छेद 14 और अनुच्छेद 19 पर प्रधानता दी। यह संविधान संशोधन केशवानन्द भारती मामले के निर्णय को निष्प्रभावी करने हेतु लाया गया था।
मिनर्वा मिल्स मामला, 1980
  • संविधान के 42वें संशोधन के उपरोक्त प्रावधान शून्य व असंवैधानिक घोषित किए गए। उच्चतम न्यायालय ने इस मामले में कहा कि नीति-निदेशक तत्वों को लागू करने हेतु मूल अधिकारों को समाप्त करने की आवश्यकता नहीं है। मूल अधिकार और डीपीएसपी एक-दूसरे के पूरक हैं।

 

डीपीएसपी का महत्व

घरेलू और विदेशी नीतियों में स्थिरता और निरंतरता की सुविधा + मौलिक अधिकारों का पूरक + मौलिक अधिकारों के पूर्ण और उचित क्रियान्वयन हेतु अनुकूल वातावरण बनाना + विपक्ष को सरकार के संचालन पर प्रभाव और नियंत्रण करने में सक्षम बनाता है + सरकार के प्रदर्शन की कड़ी परीक्षा करना + आम राजनीतिक घोषणा-पत्र के रूप में हैं + सरकार के पथ प्रदर्शक, दार्शनिक व मित्र |

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