संसद (उड़ान) # |
• राष्ट्रपति संसद के किसी भी सदन का सदस्य नहीं होता है लेकिन वह संसद का एक अभिन्न अंग होता है। इस संदर्भ में संविधान निर्माताओं ने अमेरिकी व्यवस्था के विपरीत ब्रिटिश व्यवस्था में विश्वास किया।
• भारत एवं ब्रिटेन के विपरीत अमेरिका में राष्ट्रपति, विधानमंडल का अभिन्न अंग नहीं होता है। • राष्ट्रपति दोनों सदनों का सत्र आहूत कर सकता है, लोकसभा का विघटन कर सकता है, दोनों सदनों में अभिभाषण कर सकता है और संसद के सत्र में ना होने की स्थिति में अध्यादेश जारी कर सकता है। • राष्ट्रपति 5 वर्ष की अवधि पूर्ण होने से पहले ही लोकसभा का विघटन कर सकता है और इस मामले को किसी भी कानूनी न्यायालय में चुनौती नहीं दी जा सकती है।
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• 1954 में राज्य सभा एवं लोक सभा के रूप में इनके हिंदी नामों को अपनाया गया। | |
• अधिकतम सदस्य संख्या– 250 (238 राज्य और संघ शासित प्रदेशों से अप्रत्यक्ष रूप से निर्वाचित एवं 12 सदस्य राष्ट्रपति द्वारा नामांकित होते हैं।)
• वर्तमान सदस्य संख्या– कुल245 सदस्यों में से 229 सदस्य राज्यों एवं 4 सदस्य संघ शासित प्रदेशों और 12 सदस्य राष्ट्रपति द्वारा नियुक्त किए जाने वाले (कला, साहित्य, विज्ञान एवं सामाजिक सेवा से संबंधित) सदस्यों का प्रतिनिधित्व करते हैं। • USA की सीनेट में सभी राज्यों को समान प्रतिनिधित्व प्रदान किया गया है और सीटों के आवंटन में जनसंख्या को आधार नहीं बनाया गया है। • संविधान की चौथी अनुसूची राज्यों एवं संघ शासित प्रदेशों के लिए राज्यसभा में सीटों के आवंटन से संबंधित है। • नोट: कुल 9 संघ शासित प्रदेशों में से केवल दिल्ली पुदुचेरी एवं जम्मू और कश्मीर को राज्यसभा में प्रतिनिधित्व प्रदान किया गया है। • अमेरिका के सीनेट में नामांकित सदस्य नहीं होते हैं। |
• अधिकतम सदस्य संख्या– 552 (530 सदस्य राज्यों से और 20 सदस्य संघ शासित प्रदेशों से चुने जाते हैं और 2 सदस्य राष्ट्रपति द्वारा आंग्ल भारतीय समुदाय से नियुक्त किए जाते हैं।)
• वर्तमान सदस्य संख्या– कुल545 सदस्यों में से 530 सदस्य राज्यों से 13 सदस्य संघ शासित प्रदेशों से एवं 2 सदस्य राष्ट्रपति द्वारा नियुक्त आंग्ल भारतीय सदस्य हैं।(अनुच्छेद331) • वर्तमान में 17वीं लोकसभा में आंग्ल भारतीय समुदाय से किसी भी सदस्य को नियुक्त नहीं किया गया है।
नोट: भारत की संसद एवं राज्य विधान मंडलों में आंग्ल भारतीय लोगों के लिए आरक्षित सीटों के प्रावधान को 104वें संविधान संशोधन अधिनियम, 2019 द्वारा समाप्त कर दिया गया।
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• इसके सदस्यों को राज्य विधान सभा के सदस्यों द्वारा एकल हस्तांतरणीय मताधिकार की आनुपातिक प्रतिनिधित्व प्रणाली के माध्यम से चुना जाता है।
• राज्यसभा में राज्यों के लिए सीटों का आवंटन उनकी जनसंख्या के आधार पर किया गया है। |
• इसके सदस्यों को सार्वभौमिक वयस्क मताधिकार प्रणाली के माध्यम से राज्यों के निर्वाचन क्षेत्रों से प्रत्यक्ष चुनाव के माध्यम से चुना जाता है।
• संघ शासित प्रदेशों से लोकसभा के सदस्यों को भी प्रत्यक्ष निर्वाचन के माध्यम से चुना जाता है। • 61वें संविधान संशोधन अधिनियम, 1988 द्वारा मताधिकार की आयु को 21 वर्ष से घटाकर 18 वर्ष कर दिया गया। |
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• यह स्थाई सदन होता है अर्थात इसका विघटन नहीं किया जाता है। हालांकि प्रत्येक 2 वर्षों में इसके एक तिहाई सदस्य अपने पद से मुक्त होते हैं। पद मुक्त होने वाले सदस्य फिर से निर्वाचन एवं इसके सदस्य बनने के योग्य होते हैं। | • यह स्थाई सदन नहीं होता है। सामान्य रूप से इसका कार्यकाल आम चुनाव के बाद प्रथम अधिवेशन से 5 वर्ष तक का होता है। इसके बाद यह स्वत: ही विघटित हो जाता है।
• अनुच्छेद 352 के अंतर्गत राष्ट्रीय आपातकाल के समय इसके कार्यकाल को एक बार में 1 वर्ष के लिए बढ़ाया जा सकता है। |
104वां संविधान संशोधन अधिनियम, 2019: इसके माध्यम से अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजातियों (अनुच्छेद 330 और 332) के लिए लोकसभा एवं राज्य विधानसभाओं में आरक्षण के प्रावधान को 25 जनवरी 2030 तक के लिए विस्तारित किया गया और लोकसभा में दो एंग्लो इंडियन (अनुच्छेद331) की नियुक्ति एवं विधाई निकायों में एक एंग्लो इंडियन की नियुक्ति के प्रावधान को समाप्त किया गया है।
राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति के साथ-साथ विधान परिषद एवं राज्यसभा के निर्वाचन में आनुपातिक प्रतिनिधित्व प्रणाली का उपयोग किया जाता है।
संसद की सदस्यता |
योग्यताएं: |
संविधान में शामिल प्रावधानों के अनुसार: भारत का नागरिक होना चाहिए।
1. अनुसूची 3 के अंतर्गत शपथ का प्रावधान किया गया है। 2. राज्यसभा के लिए 30 वर्ष से कम आयु नहीं होनी चाहिए। 3. लोकसभा का सदस्य बनने के लिए 25 वर्ष से कम आयु नहीं होनी चाहिए। 4. संसद द्वारा किए गए अन्य प्रावधान जैसे जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 के द्वारा।
जनप्रतिनिधि अधिनियम, 1951 के अनुसार: 1. संबंधित संसदीय निर्वाचन क्षेत्र में मतदाता के रूप में पंजीकृत होना आवश्यक है। 2. आरक्षित सीट पर निर्वाचन हेतु संबंधित राज्य, संघ शासित क्षेत्र में अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति समुदाय का सदस्य होना आवश्यक है।
निर्वाचन हेतु न्यूनतम आयु(अनुच्छेद 84): • पंचायत एवं शहरी स्थानीय निकायों के लिएà21 वर्ष। • विधानसभा एवं लोकसभा के लिएà 25 वर्ष। • विधान परिषद एवं राज्यसभा के लिएà 30 वर्ष। |
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अयोग्यताएं |
• संविधान के अनुसारà यदि सदस्य द्वारा कोई लाभ का पद धारण किया गया हो + यदि वह विकृत चित्त है और न्यायालय ने ऐसी घोषणा की है + यदि वह घोषित दिवालिया हो+ यदि वह भारत का नागरिक ना हो+ संसद द्वारा बनाई गई किसी अन्य विधि के अनुसार यदि उसे अयोग्य ठहराया गया हो।(RPA 1951)।
• जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 के अनुसारà चुनावी अपराध या चुनाव में भ्रष्ट आचरण के लिए दोषी करार दिया गया हो+ यदि किसी अपराध में 2 वर्ष या उससे अधिक की सजा हुई हो + निर्धारित समय के अंदर चुनावी खर्च का ब्यौरा ना देने पर + सरकारी ठेका काम या सेवाओं में दिलचस्पी होने पर+ भ्रष्टाचार या निष्ठाहीन होने के कारण सरकारी सेवाओं से बर्खास्त किए जाने पर+ सामाजिक अपराधों में संलिप्त रहने पर+ विभिन्न समूहों में शत्रुता बढ़ाने और रिश्वतखोरी के कारण दंडित होने पर+ कोई व्यक्ति जो निगम में लाभ के पद या प्रबंध निदेशक के पद पर हो, जिसमें सरकार का 25% हिस्सा हो। • दल बदल के आधार परà अगर कोई सदस्य अपनी इच्छा से राजनीतिक दल की सदस्यता को त्याग देता है + राजनीतिक दल द्वारा दिए गए निर्देशों के विरुद्ध मतदान करने पर+ निर्दलीय सदस्य द्वारा किसी राजनीतिक दल में शामिल होने पर+ नाम निर्देशित सदस्य द्वारा 6 महीने के बाद किसी राजनीतिक दल में शामिल होने पर।
नोट: किसी सदस्य में उपर्युक्त निरर्हताओं संबंधी प्रश्न पर राष्ट्रपति का फैसला अंतिम होगा लेकिन राष्ट्रपति को निर्वाचन आयोग से सलाह लेकर कार्य करना चाहिए।
नोट: दसवीं अनुसूची के तहत निरर्हता के सवालों का निपटारा राज्यसभा में सभापति और लोकसभा में अध्यक्ष करता है (ना कि भारत का राष्ट्रपति)। |
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स्थानों का रिक्त होना: |
दोहरी सदस्यता | • कोई व्यक्ति यदि दोनों सदनों में चुन लिया जाता है तो उसे 10 दिनों के अंदर स्पष्ट करना होता है कि उसे किस सदन में रहना है अन्यथा राज्यसभा में उसकी सीट खाली हो जाएगी।
• यदि किसी सदन का सदस्य दूसरे सदन का भी सदस्य बन जाता है तो पहले वाले सदन में उसका पद रिक्त हो जाएगा। • एक ही सदन में किसी व्यक्ति के 2 सीटों पर चुने जाने पर उसे अपनी इच्छा से 1 सीट को खाली करना होता है अन्यथा दोनों सीटें रिक्त हो जाती हैं। • कोई व्यक्ति एक ही समय पर संसद या राज्य के विधान मंडल के सदन का सदस्य नहीं हो सकता है यदि 14 दिनों के अंदर ऐसा सदस्य राज्य के विधान मंडल की सीट को खाली नहीं करता है तो संसद में उसकी सदस्यता समाप्त हो जाती है। |
निरर्हता | • संविधान के प्रावधानों के अनुसार एवं संविधान की दसवीं अनुसूची में दलबदल के प्रावधानों के अनुसार किसी व्यक्ति को अयोग्य ठहराया जा सकता है। | |
पद त्याग/ मृत्यु | • कोई सदस्य सदन के अध्यक्ष को संबोधित त्यागपत्र द्वारा अपना स्थान त्याग सकता है। | |
अनुपस्थिति | • बिना अनुमति के 60 दिनों से अधिक तक अनुपस्थित रहना। | |
अन्य स्थितियां | • यदि न्यायालय द्वारा उस चुनाव को अमान्य या शून्यकरार दे दिया जाता है।
• यदि किसी सदस्य को सदन द्वारा निष्कासित कर दिया जाता है। • यदि सदस्य राष्ट्रपति उपराष्ट्रपति के रूप में चुन लिया जाता है। • यदि सदस्य को किसी राज्य का राज्यपाल बना दिया जाता है। |
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शपथ या प्रतिज्ञान : |
• राष्ट्रपति या उसके द्वारा नियुक्त किसी व्यक्ति के समक्ष शपथ लेता है।
• जब तक कोई सदस्य शपथ नहीं लेता है तब तक वह सदन की किसी बैठक में हिस्सा नहीं ले सकता है और ना ही उसे मत देने का अधिकार होता है। इसके साथ-साथ वह संसद द्वारा प्रदान किए जाने वाले विशेषाधिकारों का भी हकदार नहीं होता है। |
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वेतन और भत्ते: |
• संसद के सदस्यों को संसद द्वारा निर्धारित वेतन एवं भत्ते प्रदान किए जाते हैं। संविधान में इनके लिए पेंशन का कोई प्रावधान नहीं है।
• लोकसभा के अध्यक्ष एवं उपाध्यक्ष और राज्यसभा के सभापति तथा उपसभापति के वेतन एवं भत्तों का निर्धारण भी संसद द्वारा किया जाता है लेकिन यह भारत की संचित निधि पर भारित होते हैं। |
नोट: अध्यक्ष एवं उपाध्यक्ष अपना पद धारण करने के बाद अलग से कोई शपथ या प्रतिज्ञान नहीं लेते हैं।
संसद के पीठासीन अधिकारी |
लोकसभा अध्यक्ष(अनुच्छेद 93) | राज्यसभा का सभापति(अनुच्छेद 89) |
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शक्ति और कार्य:
• सदन की कार्रवाई व संचालन के क्रियान्वयन को बनाए रखना। • सदन के अंदर वह भारत के संविधान, लोकसभा की प्रक्रिया तथा कार्य संचालन नियम और संसदीय पूर्वादाहरणों का अंतिम व्याख्याकार होता है। • सामान्य स्थिति में यह मत नहीं देता है परंतु मत बराबर होने की स्थिति में यह अपना मत देता है। • यह संसद के दोनों सदनों की संयुक्त बैठक की अध्यक्षता करता है।(अनुच्छेद- 108) • सदन के नेता के आग्रह पर वह गुप्त बैठक की अनुमति देता है। • यह तय करता है कि कोई विधेयक धन विधेयक है या नहीं और इस संदर्भ में उसका निर्णय अंतिम होता है। • संविधान की दसवीं अनुसूची के अंतर्गत दलबदल के प्रावधानों के अनुसार लोकसभा के किसी सदस्य के निरर्हता संबंधित प्रश्न का निपटारा करता है। इसका निर्णय न्यायिक पुनर्विलोकन के अंतर्गत आता है। (किहोतो होलोहान मामला) • वह लोकसभा की सभी संसदीय समितियों के सभापति की नियुक्ति करने के साथ-साथ उनके कार्यों का भी पर्यवेक्षण करता है। • यह कार्यमंत्रणा समिति, नियम समिति व सामान्य प्रयोजन समिति का भी अध्यक्ष होता है।
इसकी स्वतंत्रता एवं निष्पक्षता को विभिन्न तरीकों से सुनिश्चित किया जाता है: कार्यकाल की सुरक्षा प्रदान करना + संसद द्वारा निर्धारित इसके वेतन एवं भत्तों का भारत की संचित निधि पर भारित होना+ स्वतंत्र या मौलिक प्रस्ताव को छोड़कर उसके कार्यों व आचरण की चर्चा या आलोचना नहीं की जा सकती है+ वरीयता सूची में इसका स्थान काफी ऊपर है इसे भारत के मुख्य न्यायाधीश के साथ सातवें स्थान पर रखा गया है+ यह प्रधानमंत्री या उप-प्रधानमंत्री को छोड़कर सभी कैबिनेट मंत्रियों से ऊपर की रैंक पर होता है। |
इसकी शक्तियां एवं उत्तरदायित्व लोकसभा अध्यक्ष के ही समान होते हैं लेकिन निम्नलिखित दो स्थितियों में अपवाद भी देखा जाता है:
1. लोकसभा का अध्यक्ष यह निर्धारित करता है कि कोई विधेयक धन विधेयक है या नहीं और इस संबंध में उसका निर्णय अंतिम होता है। 2. संसद के दोनों सदनों की संयुक्त बैठक की अध्यक्षता लोकसभा अध्यक्ष द्वारा की जाती है।
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प्रोटेम अध्यक्ष(अनुच्छेद – 95): पिछली लोकसभा का अध्यक्ष नई लोक सभा की पहली बैठक के ठीक पहले तक अपने पद पर बना रहता है। प्रोटेम अध्यक्ष नई लोक सभा की पहली बैठक की अध्यक्षता करता है। यह सदन को नए अध्यक्ष का चुनाव करने में सहायता प्रदान करता है। राष्ट्रपति, लोकसभा के किसी सदस्य को प्रोटेम अध्यक्ष के रूप में नियुक्त करते हैं। सामान्य रूप से लोकसभा का वरिष्ठ सदस्य ही इस पद हेतु चुना जाता है।
संसद में नेता |
लोकसभा का अध्यक्ष एवं अन्य(अनुच्छेद 93) | राज्यसभा का उप-सभापति एवं अन्य(अनुच्छेद 89) | |
• 11वीं लोकसभा से सदन में ऐसी परंपरा बन गई है कि लोकसभा का अध्यक्ष सत्ताधारी दल से संबंधित होता है और उपाध्यक्ष विपक्षी दल से संबंधित होता है।
• उपाध्यक्ष का निर्वाचन लोकसभा के अध्यक्ष के बाद होता है। |
· राज्यसभा का उपसभापति राज्यसभा के सभापति को अपना त्यागपत्र सौंपता है।
· राज्यसभा का सभापति भारत के राष्ट्रपति को अपना त्याग पत्र सौंपता है।
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• इनका निर्वाचन संबंधित सदन के सदस्यों में से किया जाता है और निर्वाचन की तिथि का निर्धारण अध्यक्ष या सभापति द्वारा किया जाता है।
• यह अध्यक्ष या सभापति के अधीनस्थ नहीं होते हैं बल्कि सदन के प्रति प्रत्यक्ष रूप से उत्तरदाई होते हैं। • इन्हें संसद द्वारा निर्धारित वेतन एवं भत्ते प्रदान किए जाते हैं जो भारत की संचित निधि पर भारित होते हैं। • पद मुक्ति की प्रक्रिया अध्यक्ष एवं सभापति के ही समान होती है। |
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• अध्यक्ष की अनुपस्थिति में यह संयुक्त अधिवेशन की अध्यक्षता करता है।(अनुच्छेद 108)।
• यदि इसे किसी संसदीय समिति का सदस्य बनाया जाता है तो यह स्वत: ही उसका अध्यक्ष बन जाता है। |
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लोकसभा के सभापतियों/ राज्यसभा के उपसभापतियों की तालिका:
• इनका नामांकन अध्यक्ष/ सभापति द्वारा किया जाता है। • इसमें 10 से अधिक सदस्य शामिल नहीं होते हैं। • इनमें से कोई भी अध्यक्ष या उपाध्यक्ष की अनुपस्थिति में सदन का पीठासीन अधिकारी हो सकता है। • जब अध्यक्ष या उपाध्यक्ष का पद रिक्त होता है तो सभापति द्वारा निर्धारित तालिका के सदस्य द्वारा सदन की अध्यक्षता नहीं की जा सकती है। इस समय राष्ट्रपति द्वारा सदन के अध्यक्ष की नियुक्ति की जाती है। • इनके वेतन एवं भत्तों का निर्धारण संसद द्वारा किया जाता है और यह भारत की संचित निधि पर भारित होते हैं। |
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सदन का नेता: सदन के नियमों के अंतर्गत(अर्थात लोकसभा या राज्यसभा) (संविधान में इसका उल्लेख नहीं किया गया है), सदन के नेता का अभिप्राय प्रधानमंत्री (जिसका वह सदस्य है)है,या प्रधानमंत्री द्वारा सदन के नेता के रूप में मनोनीत कोई मंत्री जो सदन का सदस्य हो (अर्थात लोकसभा और राज्यसभा)\।
विपक्ष का नेता: संसदीय नियमों के अनुसार (संविधान में इसका उल्लेख नहीं किया गया है) सदन की ऐसी सबसे बड़ी विपक्षी पार्टी जिसके सदस्यों की संख्या सदन के कुल सदस्यों की संख्या के कम से कम दसवें हिस्से के बराबर हो उसके नेता को विपक्ष के नेता के रूप में मान्यता मिलती है। उसे कैबिनेट मंत्री के समान सुविधाएं प्रदान की जाती हैं। सबसे पहली बार 1969 में विपक्ष के नेता को मान्यता दी गई थी। 1977 में इसे सांविधिक मान्यता प्राप्त हुई। आईवर जेनिंग ने इसे वैकल्पिक प्रधानमंत्री की संज्ञा दी है।
व्हिप : व्हिप के पद का उल्लेख ना तो भारत के संविधान में, ना ही सदन के नियमों में और ना ही संसदीय विधि में किया गया है। यह संसदीय सरकार की परंपराओं पर आधारित है। प्रत्येक राजनीतिक दल का संसद में सहायक नेता के रूप में अपना व्हिप होता है। इसका उद्देश्य अपनी पार्टी के नेताओं को बड़ी संख्या में सदन में उपस्थित रखने और संबंधित मुद्दे के पक्ष या खिलाफ में पार्टी के अनुसार उनके सहयोग को सुनिश्चित करना होता है। यह संसद में सदस्यों के व्यवहार पर नजर रखता है।
संसद के सत्र |
सत्र आहूत करना (अनुच्छेद 85): |
• राष्ट्रपति संसद के प्रत्येक सदन को समय-समय पर आहूत करता है। संसद को 1 वर्ष में कम से कम 2 बार बैठक करना चाहिए।
• संसद का सत्र इसकी प्रथम बैठक से लेकर इसके सत्रावसान के मध्य की समयावधि है। • एक सत्र के सत्रावसान एवं दूसरे सत्र के प्रारंभ होने के मध्य की अवधि को अवकाश कहा जाता है। |
स्थगन : |
• पीठासीन अधिकारी द्वारा स्थगन के माध्यम से संसद के सत्र को स्थगित किया जा सकता है जो कुछ निश्चित समय, कुछ घंटे, दिन या सप्ताह का हो सकता है।
• यह सदन की बैठक को एक निश्चित समय के लिए स्थगित कर देता है। |
अनिश्चित काल के लिए स्थगन: | • इसका तात्पर्य सदन के अध्यक्ष या सभापति द्वारा अनिश्चित काल के लिए सदन को स्थगित करने से है। |
सत्रावसान: |
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विघटन: |
· केवल लोकसभा का ही विघटन होता है। सत्रावसान के विपरीत विघटन से वर्तमान सभा का कार्यकाल समाप्त हो जाता है और इसका पुनर्गठन नए चुनाव के बाद ही होता है।
1. इसका कार्यकाल पूरा हो जाने पर यह स्वयं ही विघटित हो जाती है। 2. राष्ट्रपति द्वारा सदन के विघटन से संबंधित निर्णय लेने पर। यह निर्णय लेने के लिए राष्ट्रपति प्राधिकृत होता है। जब लोकसभा का विघटन हो जाता है तो इसके सभी कार्य जैसे विधेयक, प्रस्ताव, संकल्प, नोटिस, याचिका आदि समाप्त हो जाते हैं। |
लेम डक सत्र |
• यह नई लोकसभा के गठन से पूर्व वर्तमान लोकसभा का अंतिम सत्र होता है।
• वर्तमान लोकसभा के ऐसे सदस्य जो नई लोकसभा के लिए निर्वाचित नहीं हो पाते हैं उन्हें लेम डक कहा जाता है। |
कोरम: |
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संसद में भाषा: |
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मंत्रियों एवं महान्यायवादी के अधिकार |
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व्यपगत होने वाले विधेयक | 1. लोकसभा में विचाराधीन विधेयक (चाहे लोकसभा में शुरू किए गए हो या फिर राज्यसभा द्वारा हस्तांतरित किए गए हो)
2. लोकसभा में पारित किंतु राज्यसभा में विचाराधीन विधेयक। |
व्यपगत ना होने वाले विधेयक | 1. ऐसा विधेयक जो दोनों सदनों की असहमति के कारण पारित ना हुआ हो और इसके संबंध में राष्ट्रपति ने विघटन होने से पूर्व दोनों सदनों की संयुक्त बैठक बुलाई हो।
2. ऐसा विधेयक जो राज्यसभा में विचाराधीन हो और लोकसभा द्वारा पारित ना किया गया हो। 3. दोनों सदनों द्वारा पारित और राष्ट्रपति की स्वीकृति के लिए विचाराधीन विधेयक। 4. ऐसा विधेयक जो दोनों सदनों द्वारा पारित हो और राष्ट्रपति द्वारा पुनर्विचार के लिए लौटाया गया हो। |
राष्ट्रपति अभिभाषण, आहूत, सत्रावसान, विघटन करता है।
पीठासीन अधिकारी स्थगन और अनिश्चित काल के लिए स्थगन करता है।
संसदीय कार्यवाही के साधन |
प्रश्नकाल: |
• संसद का पहला घंटा प्रश्नकाल का ही होता है इस दौरान संसद के सदस्य प्रश्न पूछते हैं और सामान्यता मंत्री उनका उत्तर देते हैं लेकिन कभी-कभी निजी सदस्यों से भी प्रश्न पूछे जा सकते हैं।
• इसकी शुरुआत भारत परिषद अधिनियम 1892 के द्वारा हुई थी। • कार्रवाई के नियमों में इसका उल्लेख किया गया है। • तारांकित प्रश्नों का उत्तर मौखिक रूप से दिया जाता है तथा इसके बाद पूरक प्रश्न भी पूछे जा सकते हैं। • अतारांकित प्रश्नों में लिखित उत्तर देने की आवश्यकता होती है तथा इसके बाद पूरक प्रश्न नहीं पूछा जा सकता है। • अल्प सूचना के प्रश्नों का उत्तर मौखिक रूप से दिया जाता है और इन्हें पूछने के लिए कम से कम 10 दिन पहले नोटिस देना होता है। |
शून्यकाल: |
• बिना पूर्व सूचना के कोई मामला उठाने का यह एक अनौपचारिक साधन है। यह प्रश्नकाल के तुरंत बाद शुरू होता है।
• 1962 से जारी यह एक भारतीय नवाचार है तथा इसका प्रक्रिया के नियमों में उल्लेख नहीं किया गया है।
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प्रस्ताव: |
1. मूल/महत्वपूर्ण प्रस्ताव: यह एक प्रकार का स्वयं वर्णित स्वतंत्र प्रस्ताव होता है जिसके तहत अति महत्वपूर्ण मामलों को उठाया जाता है। 2. स्थानापन्न प्रस्ताव: यह मूल प्रस्ताव का ही स्थान लेता है और यदि सदन द्वारा इसे स्वीकार कर लिया जाता है तो मूल प्रस्ताव स्थगित हो जाता है। 3. पूरक प्रस्ताव: इस प्रस्ताव का स्वयं में कोई अर्थ नहीं होता है इसे सदन में तब तक पारित नहीं किया जा सकता है जब तक इसके मूल प्रस्ताव का संदर्भ ना हो। 4. उप श्रेणियां: सहायक प्रस्ताव, स्थान लेने वाला प्रस्ताव और संशोधन। |
कटौती प्रस्ताव: |
साधारण कटौती: किसी विषय पर पर्याप्त चर्चा हो जाने के बाद जब उसे मतदान के लिए रखा जाता है। घटकों में कटौती: इसके अंतर्गत किसी प्रस्ताव का चर्चा से पूर्व विधेयकों या लंबे संकल्पों का समूह बना लिया जाता है और चर्चा के बाद इसे मतदान के लिए रखा जाता है। कंगारू कटौती: इसके अंतर्गत केवल महत्वपूर्ण भागों पर ही बहस और मतदान की प्रक्रिया होती है और शेष खंडों को छोड़ दिया जाता है और उन्हें पारित मान लिया जाता है। गिलोटिन कटौती: जब किसी संकल्प के किसी भाग पर चर्चा नहीं हो पाती है तो उस पर मतदान से पूर्व चर्चा कराने के लिए इस प्रकार का प्रस्ताव रखा जाता है। |
विशेषाधिकर प्रस्ताव: |
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ध्यानाकर्षण प्रस्ताव: |
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स्थगन प्रस्ताव: |
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विश्वास प्रस्ताव: |
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अविश्वास प्रस्ताव (अनुच्छेद 75) |
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निंदा प्रस्ताव: |
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धन्यवाद प्रस्ताव |
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अनियत दिवस प्रस्ताव: |
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विलंबकरी प्रस्ताव:
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औचित्य प्रश्न: |
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आधे घंटे की चर्चा |
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अल्पकालिक चर्चा: |
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विशेष उल्लेख: |
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संकल्प: |
1. गैर सरकारी सदस्यों का संकल्प: इस प्रकार के संकल्प को गैर सरकारी सदस्य द्वारा लाया जा सकता है इस पर बहस केवल वैकल्पिक शुक्रवार एवं दोपहर के बाद बैठक में की जा सकती है। 2. सरकारी संकल्प: यह संकल्प मंत्री द्वारा लाया जाता है और इस पर सोमवार से गुरुवार तक चर्चा हो सकती है। 3. सांविधिक संकल्प: इसे गैर सरकारी सदस्य द्वारा या मंत्री द्वारा लाया जा सकता है। |
संसद में विधायी प्रक्रिया |
- विधाई प्रक्रिया संसद के दोनों सदनों में ही संपन्न होती है। प्रत्येक सदन में विधेयक समान चरणों से होकर पारित होता है।
प्रस्तुत करने के आधार पर : |
सरकारी विधेयक: संसद में मंत्री द्वारा प्रस्तुत किया जाता है + प्रस्तुत करने से पहले 7 दिनों का नोटिस दिया जाता है + इसका प्रारूप संबंधित विभाग द्वारा तैयार किया जाता है। |
गैर सरकारी विधेयक: इसे मंत्री के अतिरिक्त किसी अन्य सदस्य द्वारा प्रस्तुत किया जाता है + प्रस्तुत करने से पहले एक माह का नोटिस आवश्यक होता है+ इसके निर्माण की जिम्मेदारी संबंधित सदस्य की होती है। | |
विषय वस्तु के आधार पर
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साधारण विधेयक:
• इसमें वित्तीय मामलों के अलावा अन्य विषयों को शामिल किया जाता है। • प्रत्येक साधारण विधेयक संसद में 5 चरणों से होकर गुजरता है जिसे नीचे दी गई तालिका में प्रदर्शित किया गया है। • इसे लोकसभा और राज्यसभा में किसी मंत्री या सदस्य द्वारा प्रस्तुत किया जा सकता है। • इसे राष्ट्रपति की सलाह के बिना प्रस्तुत किया जा सकता है। • इसे राज्यसभा द्वारा स्वीकार या अस्वीकार किया जा सकता है। • राज्यसभा इसे अधिकतम 6 महीनों के लिए रख सकती है। • इसमें अध्यक्ष के प्रमाण पत्र की आवश्यकता नहीं होती है। • दोनों सदनों द्वारा पारित हो जाने पर यह राष्ट्रपति की सहमति के लिए जाता है और दोनों सदनों में गतिरोध होने की स्थिति में राष्ट्रपति द्वारा संयुक्त बैठक बुलाई जा सकती है। • राष्ट्रपति इसे स्वीकृति दे सकता है, अस्वीकार कर सकता है या उसे पुनर्विचार के लिए सदन को वापस लौटा सकता है। |
धन विधेयक(अनुच्छेद 110):
• इसमें वित्तीय मामलों जैसे कर से संबंधित प्रावधान होते हैं। • इसे केवल लोकसभा में लाया जा सकता है। • इसे केवल राष्ट्रपति की सलाह पर ही लाया जाता है। • राज्यसभा द्वारा इसे अस्वीकृत या संशोधित नहीं किया जा सकता है बल्कि वह इस पर केवल सिफारिश कर सकती है और लोकसभा इन सिफारिशों को स्वीकार या अस्वीकार कर सकती है। • राज्यसभा इसे अधिकतम 14 दिनों के लिए अपने पास रख सकती है। • इसे लोकसभा अध्यक्ष द्वारा प्रमाणित करने की आवश्यकता होती है। • राज्यसभा के पास इस विधेयक से संबंधित शक्तियां काफी सीमित होती हैं। • राष्ट्रपति इसे स्वीकार या अस्वीकार कर सकता है लेकिन संसद को पुनर्विचार के लिए नहीं लौटा सकता है। |
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वित्त विधेयक– अनुच्छेद 117 (1) और 117 (3)
• इसमें धन विधेयक के अतिरिक्त वित्तीय मामलों से संबंधित विषयों को शामिल किया जाता है। • सभी धन विधेयक, वित्तीय विधेयक होते हैं लेकिन सभी वित्त विधेयक, धन विधेयक नहीं होते हैं। |
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संविधान संशोधन विधेयक:
• इसमें अनुच्छेद 368 के अंतर्गत संविधान के प्रावधानों का संशोधन किया जाता है। |
लागू होने के चरण |
प्रथम पाठन
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• किसी सदस्य द्वारा सदन में विधेयक को प्रस्तुत करने से पहले इसकी अग्रिम सूचना देनी पड़ती है।
• इस चरण में विधेयक पर किसी प्रकार की चर्चा नहीं की जाती है। |
द्वितीय पाठन
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• यह अति महत्वपूर्ण चरण है।
• इसके अंतर्गत 3 उप-चरण शामिल होते हैं: 1. सामान्य चर्चा का चरण: इसके अंतर्गत विधेयक के सिद्धांतों एवं उपबंधों पर चर्चा होती है और इसे समिति के पास भेज दिया जाता है। 2. समिति अवस्था 3. विचार विमर्श की अवस्था: इसके अंतर्गत विधेयक के समस्त उपबंधों की समीक्षा होने के साथ-साथ इसके प्रत्येक उपबंध पर खंडवार चर्चा एवं मतदान होता है। |
तृतीय पाठन
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• इस चरण में केवल विधेयक को स्वीकार या अस्वीकार करने के बारे में चर्चा की जाती है और इसमें किसी प्रकार का संशोधन नहीं किया जा सकता है।
• यदि इसे स्वीकार कर लिया जाता है तो इसे अगले सदन में सहमति के लिए भेजा जाता है। |
दूसरे सदन में विधेयक
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• यदि दूसरे सदन द्वारा किसी प्रकार के संशोधन के बिना या संशोधन के साथ विधेयक को पारित किया जाता है और प्रथम सदन द्वारा उन संशोधनों को स्वीकार कर लिया जाता है तब इस विधेयक को दोनों सदनों द्वारा पारित समझा जाता है और इसे राष्ट्रपति की स्वीकृति के लिए भेज दिया जाता है। |
राष्ट्रपति की स्वीकृति
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• यदि राष्ट्रपति द्वारा इस विधेयक को स्वीकृति प्रदान कर दी जाती है तो यह अधिनियम बन जाता है। |
वित्त विधेयक(I) और वित्त विधेयक (II)के बीच अंतर |
वित्त विधेयक (I) | वित्त विधेयक (II) |
• ऐसा विधेयक जिसमें अनुच्छेद 110 से संबंधित मामलों के साथ अन्य सामान्य विधिक मामले शामिल होते हैं। | • इसमें भारत की संचित निधि पर भारित व्यय संबंधी उपबंध होते हैं लेकिन इसमें अनुच्छेद 110 से संबंधित विषय शामिल नहीं होते हैं। |
• यह दो रूपों में धन विधेयक के समान होता है:
1. इसे केवल लोकसभा में प्रस्तुत किया जा सकता है। 2. इसे राष्ट्रपति की पूर्व सहमति से ही प्रस्तुत किया जाता है। |
• इसे संसद के दोनों सदनों में प्रस्तुत किया जा सकता है।
• इसे प्रस्तुत करने के लिए राष्ट्रपति की सहमति की आवश्यकता नहीं होती है। |
• सामान्य विधेयक की तरह ही इसके लिए समान प्रक्रिया अपनाई जाती है। | |
• दोनों सदनों के बीच गतिरोध होने की स्थिति में राष्ट्रपति इस गतिरोध को समाप्त करने के लिए संयुक्त बैठक बुला सकता है। | |
• राष्ट्रपति या तो विधेयक को अपनी स्वीकृति प्रदान कर सकता है या उसे रोक सकता है या फिर पुनर्विचार के लिए सदन को वापस भेज सकता है। |
दोनों सदनों की संयुक्त बैठक(अनुच्छेद- 108) |
- किसी विधेयक पर गतिरोध होने की स्थिति में संविधान द्वारा संयुक्त बैठक के रूप में एक असाधारण व्यवस्था प्रदान की गई है।
- विधेयक से संबंधित गतिरोध को समाप्त करने और उस पर चर्चा और मतदान करने के लिए राष्ट्रपति दोनों सदनों की संयुक्त बैठक बुला सकता है।
- संयुक्त बैठक का प्रावधान साधारण विधेयक, वित्त विधेयक के लिए किया गया है और धन विधेयक तथा संविधान संशोधन विधेयक के संदर्भ में संयुक्त बैठक की कोई व्यवस्था नहीं है।
- यदि विवादित विधेयक को संयुक्त बैठक में दोनों सदनों के उपस्थित एवं मत देने वाले सदस्यों की संख्या के बहुमत से पारित कर दिया जाता है तो यह माना जाता है कि विधेयक को दोनों सदनों ने पारित कर दिया है।
- राष्ट्रपति द्वारा संयुक्त बैठक का प्रावधान करने के बाद कोई भी सदन इस विधेयक पर कार्यवाही नहीं कर सकता है और ना ही यह विधेयक लोकसभा के विघटन से समाप्त होता है।
- दोनों सदनों की संयुक्त बैठक की अध्यक्षता लोकसभा अध्यक्ष द्वारा की जाती है तथा उसकी अनुपस्थिति में उपाध्यक्ष द्वारा इसकी अध्यक्षता की जाती है। राज्यसभा का सभापति इस बैठक की अध्यक्षता नहीं करता है क्योंकि वह संसद के किसी भी सदन का सदस्य नहीं होता है लेकिन राज्यसभा का उपसभापति इस बैठक की अध्यक्षता कर सकता है।
- इस संयुक्त बैठक का कोरम दोनों सदनों की कुल सदस्य संख्या का दसवां भाग होता है। संयुक्त बैठक की कार्यवाही लोकसभा के प्रक्रिया नियमों के अनुसार संचालित होती है ना कि राज्यसभा के नियमों के अनुसार।
- 1950 से अब तक निम्नलिखित तीन मामलों में दोनों सदनों की संयुक्त बैठक बुलाया गया है
- दहेज प्रतिषेध विधेयक, 1960
- बैंक सेवा आयोग विधेयक, 1977
- आतंकवाद निवारण विधेयक, 2002
संसद में बजट(अनुच्छेद 112) |
- संविधान में बजट को वार्षिक वित्तीय विवरण कहा गया है। इसका उल्लेख संविधान के अनुच्छेद 112 में किया गया है।
- बजट में वित्तीय वर्ष के दौरान भारत सरकार की अनुमानित प्राप्तियों एवं खर्चों का विवरण होता है।
- भारत के संविधान में बजट की प्रक्रिया से संबंधित निम्नलिखित प्रावधान है:
- राष्ट्रपति द्वारा प्रत्येक वित्त वर्ष में संसद के दोनों सदनों के पटल पर सरकार के अनुमानित राजस्व एवं खर्चों से संबंधित दस्तावेज को रखवाया जाएगा।
- राष्ट्रपति की सिफारिश के बिना अनुदान की मांग नहीं की जाएगी।
- समेकित विधि निर्मित विनियोग के भारत की संचित निधि से कोई धन नहीं निकाला जाएगा।
- विधिक प्रक्रिया के अलावा किसी कर का संग्रहण या उगाही नहीं की जाएगी संसद किसी कर को कम या समाप्त कर सकती है लेकिन इसे बढा नहीं सकती है।
- अनुदान की मांगों पर राज्यसभा को मतदान की शक्ति प्राप्त नहीं होती है यह लोकसभा का अनन्य विशेषाधिकार है।
- भारत की संचित निधि पर भारित व्यय पर संसद में मतदान नहीं होता है लेकिन इस पर संसद में चर्चा हो सकती है।
- बजट में दो प्रकार के व्यय शामिल होते हैं- भारत की संचित निधि पर भारित व्यय और भारत की संचित निधि से किए गए व्यय।
- राष्ट्रपति,उपराष्ट्रपति, लोकसभा अध्यक्ष, राज्यसभा के उपसभापति, लोकसभा के उपाध्यक्ष, उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश इत्यादि के वेतन एवं भत्ते भारत की संचित निधि पर भारित व्यय के अंतर्गत शामिल होते हैं।
- किसी न्यायालय या मध्यस्थ अधिकरण के निर्णय,डिक्री की पुष्टि के लिए अपेक्षित राशियां इसपर आधारित होते है।
- संसद द्वारा विहित अन्य खर्च।
- पारित होने की प्रक्रिया: बजट को प्रस्तुत करना à सामान्य चर्चाà विभागीय समितियों द्वारा जांच करनाà अनुदान की मांगों पर मतदान करनाà विनियोग विधेयक का पारित होनाà वित्त विधेयक का पारित होना।
- सदन के सदस्य अनुदान की मांगों पर कटौती के लिए प्रस्ताव ला सकते हैं इस प्रकार के प्रस्ताव को कटौती प्रस्ताव कहा जाता है यह निम्नलिखित प्रकार के होते हैं:
नीति कटौती प्रस्ताव: | इसके अंतर्गत मांग की नीति के प्रति असहमति व्यक्त की जाती है इसमें मांग की राशि में एक रुपए की कटौती की मांग की जाती है। |
आर्थिक कटौती प्रस्ताव: |
इसमें मांग की राशि को एक निश्चित सीमा तक कम करने के लिए कहा जाता है( यह या तो मांग में एकमुश्त कटौती हो सकती है या फिर पूर्व समाप्ति या मांग की किसी मद में कटौती हो सकता है)। |
सांकेतिक कटौती प्रस्ताव: | इसमें कुल मांग में ₹100 की कमी करने के लिए कहा जाता है। |
- एक वित्तीय वर्ष हेतु आय और व्यय के सामान्य प्रावधान के अलावा संसद द्वारा असाधारण या विशेष परिस्थितियों में अनेक अन्य अनुदान भी प्रदान किए जाते हैं:
अनुपूरक अनुदान: | इसकी स्वीकृति तब प्रदान की जाती है जब किसी विशेष सेवा हेतु विनियोग अधिनियम द्वारा प्राधिकृत राशि उस वर्ष हेतु अपर्याप्त होती है। |
अतिरिक्त अनुदान: | जब चालू वित्तीय वर्ष के दौरान किसी नई सेवा को शामिल करने से अतिरिक्त व्यय की आवश्यकता उत्पन्न होती है तब इसके माध्यम से धन प्रदान किया जाता है। |
अधिक अनुदान: | जब किसी वित्तीय वर्ष में किसी सेवा के लिए बजट में निर्धारित राशि से अतिरिक्त राशि खर्च हो जाती है तब इसके माध्यम से धन प्रदान किया जाता है। |
प्रत्ययानुदान: | जब किसी सेवा के लिए आकस्मिक रूप से धन की अत्यधिक एवं तुरंत सहायता की आवश्यकता होती है तो इस प्रकार की अनुदान की मांग रखी जाती है। |
अपवादानुदान: | इसे विशेष प्रयोजन के लिए प्रदान किया जाता है तथा यह वर्तमान वित्तीय वर्ष या सेवा से संबंधित नहीं होता है। |
सांकेतिक अनुदान: |
इस अनुदान की मांग तब रखी जाती है जब पहले से प्रस्तावित किसी सेवा के अतिरिक्त सेवा के लिए धन की आवश्यकता होती है। यह किसी अतिरिक्त व्यय से संबंधित नहीं होता है। |
विभिन्न निधियां: |
भारत की संचित निधि | भारत की लोक लेखा निधि | भारत की आकस्मिकता निधि |
• अनुच्छेद 266 | • अनुच्छेद 266 | • अनुच्छेद 267 |
• यह एक ऐसी निधि है जिसमें सभी प्राप्तियां जमा होती हैं और सभी भुगतान किए जाते हैं। | • भारत की संचित निधि में जमा होने वाले धन के अलावा अन्य सार्वजनिक धन को इसी में जमा किया जाता है। | • कानून के अंतर्गत संसद द्वारा निर्धारित राशि समय-समय पर इसमें जमा की जाती है। |
• भारत सरकार की ओर से विधिक रुप से प्राधिकृत सभी भुगतान इसी निधि से किए जाते हैं। | • इसमें भविष्य निधि जमा, न्यायिक जमा, बचत बैंक जमा, विभागीय जमा इत्यादि शामिल हैं। | • यह निधि राष्ट्रपति के अधिकार में होती है और वह किसी अप्रत्याशित व्यय के लिए इससे अग्रिम दे सकता है। |
• इसमें से कोई भी धन संसद की विधि के अतिरिक्त नहीं निकाला जा सकता है। | • इस लेखे को कार्यकारी प्रक्रिया द्वारा संचालित किया जाता है। | • इस निधि को राष्ट्रपति की ओर से वित्त सचिव द्वारा रखा जाता है। इसे कार्यकारी प्रक्रिया द्वारा संचालित किया जाता है। |
संसद की भूमिका |
भारत की राजनीतिक – प्रशासनिक व्यवस्था में संसद की केंद्रीय भूमिका होती है और इसे विभिन्न शक्तियां प्राप्त होती हैं। इसकी शक्तियों एवं कार्यों को निम्नलिखित शीर्षकों के तहत वर्गीकृत किया जा सकता है:विधायी शक्तियां एवं कार्य + कार्यकारी शक्तियां एवं कार्य + वित्तीय शक्तियां एवं कार्य + सांविधिक शक्तियां एवं कार्य + न्यायिक शक्तियां एवं कार्य + निर्वाचक शक्तियां एवं कार्य + अन्य शक्तियां एवं कार्य।
राज्यसभा की विशेष शक्तियां |
राज्यसभा को ऐसी चार विशेष शक्तियां प्रदान की गई है जो लोकसभा को प्राप्त नहीं है जैसे:
- यह संसद को राज्य सूची में शामिल विषयों पर विधि बनाने हेतु अधिकृत कर सकती है।(अनुच्छेद 249)
- यह संसद को केंद्र एवं राज्य दोनों के लिए नई अखिल भारतीय सेवाओं के सृजन हेतु अधिकृत कर सकती है।(अनुच्छेद 312)
- उप-राष्ट्रपति को हटाने से संबंधित प्रस्ताव केवल राज्यसभा में ही लाया जा सकता है ना कि लोकसभा में।(अनुच्छेद 67)
- यदि आपातकाल से पहले या आपातकाल के दौरान लोकसभा का विघटन हो जाता है तो राष्ट्रीय आपातकाल या राष्ट्रपति शासन या वित्तीय आपातकाल (अनुच्छेद 352, 356 और 360 ) राज्यसभा केअनुमोदन द्वारा जारी रह सकता है।
संसदीय विशेषाधिकार |
- यह संसद के दोनों सदनों, संसदीय समितियों और इनके सदस्यों को प्राप्त होता हैं।
- भारत के संविधान द्वारा भारत के महान्यायवादी को संसदीय विशेषाधिकार प्रदान किए गए हैं लेकिन यह भारत के राष्ट्रपति को प्रदान नहीं किए गए हैं जो कि संसद का एक अभिन्न अंग है।
सामूहिक विशेषाधिकार : |
संसद के दोनों सदनों के संबंध में सामूहिक विशेषाधिकार निम्नलिखित हैं:
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व्यक्तिगत विशेषाधिकार : |
व्यक्तिगत अधिकारों से संबंधित विशेषाधिकार निम्नलिखित हैं:
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विशेष अधिकारों का हनन एवं सदन की अवमानना: |
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विशेषाधिकारों के स्रोत : |
मूल रूप से संविधान में(अनुच्छेद105) संसद में भाषण देने की स्वतंत्रता तथा इसकी कार्यवाही के प्रकाशन के अधिकार के रूप में दो विशेष अधिकारों को शामिल किया गया है। संसद ने अब तक विशेष अधिकारों को संहिताबद्ध करने के संबंध में कोई विशेष विधि नहीं बनाई है। यह पांच स्रोतों पर आधारित है जैसे:
1. संवैधानिक प्रावधान 2. संसद द्वारा निर्मित अनेक कानून 3. दोनों सदनों के नियम 4. संसदीय परंपरा और 5. न्यायिक व्याख्या। |
संसद की संप्रभुता |
- संप्रभुता का तात्पर्य राज्य की सर्वोच्च शक्ति से है। इसके प्रभाव एवं न्याय क्षेत्र पर किसी प्रकार के प्रतिबंध का ना होना है। संसद की संप्रभुता का सिद्धांत ब्रिटिश संसद से संबंधित है जहां पर सर्वोच्च शक्ति संसद में निहित है।
- भारतीय संसद को संप्रभु इकाई नहीं कहा जा सकता है क्योंकि इसके प्रभाव व न्याय क्षेत्र पर विधिक प्रतिबंध आरोपित हैं।
- भारतीय संसद की संप्रभुता को सीमित करने वाले कारक निम्नलिखित हैं:
- संविधान की लिखित प्रकृति
- सरकार की संघीय व्यवस्था
- न्यायिक समीक्षा की व्यवस्था
- मूल अधिकार
- इस संदर्भ में भारतीय संसद अमेरिकी विधायिका (जिसे कांग्रेस के रूप में जाना जाता है)के समान है। अमेरिका में भी कांग्रेस की संप्रभुता वैधानिक रूप से संविधान के लिखित शब्दों, सरकार की संघीय व्यवस्था, न्यायिक समीक्षा तथा अधिकारों के विधेयक द्वारा प्रतिबंधित है।