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राष्ट्रपति और राज्यपाल (उड़ान)

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राष्ट्रपति और राज्यपाल (उड़ान) #

 

 

 

अनुच्छेद

राष्ट्रपति राज्यपाल
· भाग V के अनुच्छेद 52 से 78 तक वर्णित है।

· अनुच्छेद 123 में अध्यादेश प्रख्यापित करने कि शक्ति दी गई है।

· संघ कार्यपालिका में शामिल: राष्ट्रपति, उप-राष्ट्रपति , प्रधानमंत्री तथा महान्यायवादी।

· भाग 6 के अनुच्छेद 153 से 167 तक वर्णित है।

· अनुच्छेद 213 में अध्यादेश प्रख्यापित करने कि शक्ति दी गई है।

· राज्य कार्यपालिका में शामिल: राज्यपाल, मुख्यमंत्री, मंत्रीपरिषद और राज्य के महाधिवक्ता (एडवोकेट जनरल)।

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

राष्ट्रपति का निर्वाचन

 

• भारत के लोगों द्वारा अप्रत्यक्ष रूप से चुना जाता है।

अप्रत्यक्ष चुनाव के मुख्य कारण

1. राष्ट्रपति केवल नाम मात्र का कार्यकारी होता है तथा मुख्य शक्तियां प्रधानमंत्री के नेतृत्व वाले मंत्रिमंडल में निहित होती हैं।

2. राष्ट्रपति का प्रत्यक्ष चुनाव अत्यधिक खर्चीला तथा समय व ऊर्जा का अपव्यय है।

निर्वाचक मंडल के सदस्य:

1. संसद के दोनों सदन (लोकसभा और राज्यसभा) के निर्वाचित सदस्य,

2. राज्य विधानसभा के निर्वाचित सदस्य (न तो निर्वाचित और न ही विधान परिषद के मनोनीत सदस्य निर्वाचक मंडल का हिस्सा हैं),

3. केंद्रशासित प्रदेशों दिल्ली व पुडुचेरी विधानसभाओं के निर्वाचित सदस्य।

• राष्ट्रपति के चुनाव में विभिन्न राज्यों के प्रतिनिधित्व के पैमाने के साथ-साथ सभी राज्यों और संघ के बीच समानता प्रदान करने के लिए , वोट का मुल्य निम्नलिखित तरीके से निर्धारित किया जाता है।

1. एक विधायक के मत का मूल्य:राज्य की कुल जनसंख्या/राज्य विधानसभा के निर्वाचित सदस्य X

 

2. एक संसद सदस्य के मतों का मूल्य: सभी राज्यों के विधायकों के मतों का कुल मूल्य/संसद के निर्वाचित सदस्यों की कुल सदस्य संख्या

 

• राष्ट्रपति का चुनाव अनुपातिक प्रतिनिधित्व के अनुसार एकल संक्रमणीय मत और गुप्त मतदान द्वारा होता है किसी उम्मीदवार को राष्ट्रपति के चुनाव में निर्वाचित होने के लिए मतों का एक निश्चित भाग प्राप्त करना आवश्यक है।

 

निश्चित मतों का भाग = कुल वैध मत/2 +1

 

• राष्ट्रपति चुनाव से संबंधित सभी विवादों की जांच व फैसले उच्चतम न्यायालय में होते हैं तथा उसका फैसला अंतिम होता है।

• यदि उच्चतम न्यायालय द्वारा किसी व्यक्ति की राष्ट्रपति के रूप में नियुक्ति को अवैध घोषित किया जाता है, तो उच्चतम न्यायालय की घोषणा से पूर्व उसके द्वारा किए गए कार्य अवैध नहीं माने जाएंगे तथा प्रभावी बने रहेंगे।

 

महत्वपूर्ण तथ्य: मनोनीत सदस्य चुनाव में भाग नहीं लेते हैं, बल्कि महाभियोग प्रक्रिया में भाग लेते हैं। राष्ट्रपति के चुनाव को इस आधार पर चुनौती नहीं दी जा सकती कि निर्वाचक मंडल अपूर्ण है (निर्वाचक मंडल के किसी सदस्य का पद रिक्त होने पर)।

 

मापदंड राष्ट्रपति राज्यपाल
 

 

नियुक्ति

भारत की जनता द्वारा अप्रत्यक्ष निर्वाचन

 

  • राष्ट्रपति द्वारा मनोनीत
  • राज्यपाल न तो जनता द्वारा सीधे चुना जाता है और न ही अप्रत्यक्ष रूप से राष्ट्रपति की तरह संवैधानिक प्रक्रिया के तहत उसका चुनाव होता है। (कनाडा मॉडल)

राज्य में राज्यपाल का कार्यालय केंद्र सरकार के अधीन रोजगार नहीं है, यह एक स्वतंत्र संविधानिक पद है और यह केंद्र सरकार के अधीनस्थ नहीं है।

 

 

 

 

 

अर्हताएं

  • वह भारत का नागरिक हो (प्राकृतिक या पंजीकृत)
  • वह 35 वर्ष की आयु पूर्ण कर चुका हो।
  • वह लोकसभा का सदस्य निर्वाचित होने के लिए अहि॔त है।
  • इसके अतिरिक्त राष्ट्रपति के चुनाव के नामांकन के लिए उम्मीदवार के कम से कम 50 प्रस्तावक व 50 अनुमोदक होने चाहिए। प्रत्येक उम्मीदवार भारतीय रिजर्व बैंक में ₹15000 जमानत राशि के रूप में जमा करेगा। यदि उम्मीदवार कुल डाले गए मतों का 1/6 भाग प्राप्त करने में असमर्थ रहता है तो यह राशि जब्त हो जाती है।
· वह भारत का नागरिक हो (प्राकृतिक या पंजीकृत)।

  • वह 35 वर्ष की आयु पूर्ण कर चुका हो।
  • दो अन्य परंपराएं:

1.उसे बाहरी होना चाहिए अर्थात वह उस राज्य से संबंधित ना हो जहां उसे नियुक्त किया गया है।

2.जब राज्यपाल की नियुक्ति हो तब राष्ट्रपति के लिए आवश्यक हो कि वह राज्य के मामले में मुख्यमंत्री से परामर्श करें ताकि राज्य में संवैधानिक व्यवस्था सुनिश्चित हो।

यद्यपि दोनों परंपराओं का कुछ मामलों में उल्लंघन किया गया है।

 

शपथ या प्रतिज्ञान

उच्चतम न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश और उनकी अनुपस्थिति में वरिष्ठतम न्यायाधीश द्वारा राष्ट्रपति को पद की शपथ दिलाई जाती है। राज्यपाल को शपथ, संबंधित राज्य के उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश दिलवाते हैं। उनकी अनुपस्थिति में उपलब्ध वरिष्ठतम न्यायाधीश शपथ दिलवाते हैं।
 

 

 

 

 

 

शर्तेँ

संविधान द्वारा:

• उसे न तो संसद सदस्य होना चाहिए और न ही विधानमंडल का सदस्य। यदि कोई व्यक्ति निर्वाचित होता है तो उसे पद ग्रहण करने से पूर्व उस सदन से त्याग-पत्र देना होगा।

• उसे किसी लाभ के पद पर नहीं होना चाहिए।

• उसे संसद द्वारा निर्धारित उप-लब्धियों ,भत्ते व विशेषाधिकार प्राप्त होंगे।

• उसकी उपलब्धियां और भत्ते उसकी पदावधि के दौरान कम नहीं किए जाएंगे।

• यदि वही व्यक्ति दो या अधिक राज्यों में बतौर राज्यपाल नियुक्त होता है तो ये उपलब्धियां और भत्ते राष्ट्रपति द्वारा तय मानकों के हिसाब से राज्य मिलकर प्रदान करेंगे।

उन्मुक्तियां और विशेषाधिकार:

• इन्हें अपने पदीय कर्तव्यों के संदर्भ में किए गए कार्य के लिए किसी न्यायालय में उत्तरदायी नहीं ठहराया जा सकता है।

• कार्यकाल के दौरान इनके विरुद्ध कोई भी आपराधिक कार्यवाही नहीं शुरू की जाएगी।

• इनके कार्यकाल के दौरान इनके खिलाफ किसी भी न्यायालय द्वारा इनकी गिरफ्तारी या कारावास का कोई आदेश जारी नहीं किया जा सकता।

राष्ट्रपति या राज्यपाल द्वारा इनके पद ग्रहण करने के पूर्व या उसके बाद किसी कार्य के लिए इनकी पदावधि के दौरान किसी न्यायालय में कोई सिविल कार्यवाही तब तक नहीं शुरू की जाएगी जब तक की ऐसे सिविल कार्यवाही शुरू करने की सूचना राष्ट्रपति / राज्यपाल को 2 माह की अग्रिम सूचना देकर ही ऐसी कार्यवाही की जा सकती है।

 

 

 

कार्यकाल

  • कार्यकाल– 5 वर्ष
  • त्याग-पत्र उप-राष्ट्रपति को दे सकता है।
  • वह इस पद पर पुनः निर्वाचित हो सकता है। वह कितनी ही बार पुनः निर्वाचित हो सकता है।(हालांकि अमेरिका में एक व्यक्ति दो बार से अधिक राष्ट्रपति नहीं बन सकता)
  • जब तक उसका उत्तराधिकारी पद ग्रहण ना कर ले राष्ट्रपति अपने 5 वर्ष के कार्यकाल के उपरांत भी पद पर बना रह सकता है।
  • राज्यपाल का कार्यकाल उसके पद ग्रहण से 5 वर्ष की अवधि के लिए होता है किंतु वास्तव में वह राष्ट्रपति के प्रसादपर्यंत पद धारण करता है।
  • राज्यपाल के ऊपर राष्ट्रपति के प्रसादपर्यंत का मामला न्याय पूर्ण नहीं है। राज्यपाल के पास ना तो कार्यकाल की सुरक्षा है और ना ही कार्यालय की निश्चिंतता है।
  • वह राष्ट्रपति को संबोधित कर त्याग-पत्र दे सकता है।
  • राज्यपाल 5 वर्ष के अपने कार्यकाल के बाद भी तब तक पद पर बना रह सकता है जब तक की उसका उत्तराधिकारी कार्य ग्रहण न कर ले।
 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

महाभियोग

  • राष्ट्रपति पर ‘संविधान का उल्लंघन’ करने पर महाभियोग चलाकर उसे पद से हटाया जा सकता है। हालांकि संविधान ने ‘संविधान का उल्लंघन’ वाक्य को परिभाषित नहीं किया है।
  • महाभियोग के आरोप संसद के किसी भी सदन में प्रारंभ किए जा सकते हैं।
  • इन आरोपों पर संसद के एक चौथाई सदस्यों (जिस सदन ने आरोप लगाया हैं) के हस्ताक्षर होने चाहिए और राष्ट्रपति को 14 दिन का नोटिस देना अनिवार्य है।
  • महाभियोग का प्रस्ताव दो तिहाई बहुमत से पारित होने के पश्चात यह दूसरे सदन में भेजा जाता है, जिसे इन आरोपों की जांच करनी होती है।
  • राष्ट्रपति को इसमें उपस्थित होने तथा अपना प्रतिनिधित्व कराने का अधिकार होगा। यदि दूसरा सदन इन आरोपों को सही पाता है और महाभियोग प्रस्ताव को दो तिहाई बहुमत से पारित करता है तो राष्ट्रपति को प्रस्ताव पारित होने की तिथि से उसके पद से हटना होगा।
  • इस प्रकार महाभियोग संसद की एक अर्द्ध न्यायिक प्रक्रिया है।

o संसद के दोनों सदनों के नामांकित सदस्य जिन्होंने राष्ट्रपति के चुनाव में भाग नहीं लिया था, इस महाभियोग में भाग लेंगे।

o राज्य विधानसभाओं के निर्वाचित सदस्य तथा दिल्ली व पुडुचेरी केंद्रशासित राज्य विधानसभाओं के सदस्य इस महाभियोग प्रस्ताव में भाग नहीं लेते हैं जिन्होंने राष्ट्रपति के चुनाव में भाग लिया था।

 

 

  • संविधान ने ऐसी कोई विधि नहीं बनाई है, जिसके तहत राष्ट्रपति राज्यपाल को हटा दें।
राष्ट्रपति के पद की रिक्तता

 

  • राष्ट्रपति का पद निम्न प्रकार से रिक्त हो सकता है: 5 वर्षीय कार्यकाल समाप्त होने पर, उसके त्यागपत्र देने पर, महाभियोग प्रक्रिया द्वारा उसे पद से हटाने पर, उसकी मृत्यु पर, अन्यथा जैसे यदि वह पद ग्रहण करने के लिए अर्हक ना हो अथवा निर्वाचन अवैध घोषित हो।
  • यदि पद रिक्त होने का कारण उसके कार्यकाल का समाप्त होना हो तो उस पद को भरने हेतु उसके कार्यकाल पूर्ण होने से पूर्व नया चुनाव कराना चाहिए, इस स्थिति में उपराष्ट्रपति को यह अवसर नहीं मिलता है कि वह कार्यवाहक राष्ट्रपति की तरह कार्य करें और उसके कर्तव्यों का निर्वहन करें।
  • यदि उसका पद, उसकी मृत्यु त्यागपत्र निष्कासन अथवा अन्यथा किसी कारण से रिक्त होता है तो नए राष्ट्रपति का चुनाव पद रिक्त होने की तिथि से 6 महीने के भीतर कराना चाहिए। उप-राष्ट्रपति,राष्ट्रपति के निर्वाचित होने तक कार्यवाहक राष्ट्रपति के रूप में कार्य करेगा।
  • नया निर्वाचित राष्ट्रपति पद ग्रहण करने से 5 वर्ष तक अपने पद पर बना रहेगा।
  • यदि वर्तमान राष्ट्रपति अनुपस्थित, बीमारी या अन्य कारणों से अपने पद पर कार्य करने में असमर्थ हो, तो उपराष्ट्रपति उसके पुनः पद ग्रहण करने तक कार्यवाहक राष्ट्रपति के रूप में कार्य करेगा। यदि उप-राष्ट्रपति का पद भी रिक्त हो तो भारत का मुख्य न्यायाधीश (अथवा उसका भी पद रिक्त होने पर उच्चतम न्यायालय का वरिष्ठतम न्यायाधीश)कार्यवाहक राष्ट्रपति के रूप में कार्य करेगा तथा उसके कर्तव्यों का निर्वाह करेगा।
वीटो शक्ति
  • अत्यंतिक वीटों { Absolute Veto (AV)}: इसका संबंध राष्ट्रपति की उस शक्ति से है जिसमें वह संसद द्वारा पारित किसी विधेयक को अपने पास सुरक्षित रखता है।
  • विशेषित वीटो {Qualified veto (QV)}: उच्च बहुमत के साथ विधायिका द्वारा निरस्त की जा सके। )संयुक्त राज्य अमेरिका के राष्ट्रपति को प्राप्त)
  • निलंबनकारी वीटो {Suspensive veto (SV)}: राष्ट्रपति इस वीटो का प्रयोग तब करता है जब वह किसी विधेयक को संसद के पुनर्विचार हेतु लौट देता है, राष्ट्रपति के इस वीटो को उस विधेयक को साधारण बहुमत से पुनः पारित कराकर निरस्त किया जा सकता है, राष्ट्रपति धन विधेयकों के मामले में इस वीटो का प्रयोग नहीं कर सकता है।
  • पॉकेट वीटो {Pocket veto (PV)}: इस वीटो में राष्ट्रपति विधेयक पर न तो कोई सहमति देता है न अस्वीकृत करता है और न ही लौटाता है, परंतु अनिश्चित काल के लिए विधेयक को लंबित कर देता है, राष्ट्रपति की विधेयक पर किसी भी प्रकार का निर्णय न देने की शक्ति पॉकेट वीटो के नाम से जानी जाती है(44वें संविधान संशोधन अधिनियम 1978- राष्ट्रपति के लिए संवैधानिक संशोधन विधेयकों को अपनी सहमति देना अनिवार्य बना देता हैं)।
अनुच्छेद 111 के तहत संसदीय कानून पर वीटो:

• वह विधेयक पर अपनी स्वीकृति दे सकता है, अथवा

• विधेयक पर अपनी स्वीकृति को सुरक्षित रख सकता है(AV) ,अथवा

• वह विधेयक (यदि विधेयक धन विधेयक नहीं है)को संसद के पुनर्विचार हेतु लौटा सकता है हालांकि यदि संसद इस विधेयक को पुनः बिना किसी संशोधन के अथवा संशोधन करके राष्ट्रपति के सामने प्रस्तुत करें तो राष्ट्रपति को अपनी स्वीकृति देनी ही होगी।

 

अनुच्छेद 201 के तहत राज्य के कानून पर वीटो:

• वह विधेयक पर अपनी स्वीकृति दे सकता है, अथवा

• वह विधेयक पर अपनी स्वीकृति सुरक्षित रख सकता है, अथवा

• वह राज्यपाल को निर्देश दे सकता है कि वह विधेयक (यदि धन विधेयक नहीं है) को राज्य विधायिका के पास पुनर्विचार हेतु लौटा दे। यदि राज्य विधायिका किसी संशोधन के बिना अथवा संशोधन करके पुनः विधेयक को पारित कर राष्ट्रपति के पास भेजती है तो राष्ट्रपति इस पर अपनी सहमति देने के लिए बाध्य नहीं है।

• इसके अतिरिक्त संविधान में यह समय सीमा भी तय नहीं है कि राज्यपाल द्वारा राष्ट्रपति के विचारार्थ रखे विधेयक पर राष्ट्रपति कब तक अपना निर्णय दे। इस प्रकार राष्ट्रपति राज्य विधेयकों के संदर्भ में भी पॉकेट वीटो का प्रयोग कर सकता है।

अनुच्छेद 200 के तहत राज्य के कानून पर वीटो:

• वह विधेयक पर अपनी स्वीकृति दे सकता है, अथवा

• वह विधेयक पर अपनी स्वीकृति सुरक्षित रख सकता है, अथवा

• वह विधेयक (यदि धन विधेयक न हो) को राज्य विधायिका को पुनर्विचार के लिए लौटा सकता है।

वह विधेयक को राष्ट्रपति के विचाराधीन आरक्षित कर सकता है।

अध्यादेश जारी करने की शक्ति
  • संविधान के अनुच्छेद 123/212 के तहत राष्ट्रपति /राज्यपाल को संसद/राज्य विधानमंडल के सत्रावसान की अवधि में अध्यादेश जारी करने की शक्ति प्रदान की गई है।
  • वह अध्यादेश केवल तभी जारी कर सकता है जब संसद /राज्य विधानमंडल के दोनों सदनों अथवा दोनों में से किसी भी एक सदन का सत्र न चल रहा हो।
  • संसद/राज्य विधानमंडल सत्रावसान: इस अवधि में पारित किया गया प्रत्येक अध्यादेश संसद/राज्य विधान मंडल की पुनः बैठक होने पर दोनों सदनों के समक्ष प्रस्तुत किया जाना चाहिए। यदि संसद /राज्य विधान मंडल के दोनों सदन उस अध्यादेश को पारित कर देती हैं तो वह कानून का रूप धारण कर लेता है (यदि इस पर संसद कोई कार्यवाही नहीं करती तो संसद की दोबारा बैठक के 6 हफ्ते के पश्चात यह अध्यादेश समाप्त हो जाता है।)
  • किसी अध्यादेश की अधिकतम अवधि संसद की मंजूरी न मिलने की स्थिति में 6 महीने और छह हफ्तों की होती है। (संसद के दो सत्रों के मध्य अधिकतम अवधि 6 महीने होती है)।
  • अध्यादेश केवल उन्हीं मुद्दों पर जारी किया जा सकता है जिन पर संसद कानून बना सकती है। अध्यादेश पर वही संवैधानिक सीमाएं होती हैं, जो संसद द्वारा बनाए गए किसी कानून की होती हैं। अतः एक अध्यादेश किसी भी मौलिक अधिकार का लघुकरण या उसको छीन नहीं सकता।
  • जब राष्ट्रपति /राज्यपाल इस बात से संतुष्ट हो कि अब ऐसी परिस्थितियां आ गई हैं कि तुरंत कदम उठाया जाना जरूरी है तो वह अध्यादेश प्रख्यापित कर सकते हैं।

राष्ट्रपति /राज्यपाल किसी भी समय किसी अध्यादेश को वापस ले सकतें हैं।

हालांकि राष्ट्रपति /राज्यपाल की अध्यादेश जारी करने की शक्ति उसकी कार्य स्वतंत्रता का अंग नहीं है और वह किसी भी अध्यादेश को प्रधानमंत्री/ मुख्यमंत्री के नेतृत्व वाले मंत्रिमंडल की सलाह पर ही जारी करता है अथवा वापस लेता है।

एक विधेयक की भांति एक अध्यादेश भी पूर्ववर्ती हो सकता है अर्थात इसे पिछली तिथि से प्रभावी किया जा सकता है यह संसद/राज्य विधानसभा के किसी भी कार्य या अन्य अध्यादेश को संशोधित अथवा निरसित कर सकता है।

क्षमादान करने की शक्ति संविधान के अनुच्छेद 72 में राष्ट्रपति को उन व्यक्तियों को क्षमा करने की शक्ति प्रदान की गई है जो, निम्नलिखित मामलों में किसी अपराध के लिए दोषी करार दिए गए हैं:

• संघीय विधि के विरुद्ध किसी अपराध में दिए गए दंड में;

• सैन्य न्यायालय द्वारा दिए गए दंड में, और;

• यदि दंड का स्वरूप मृत्युदंड हो।

संविधान के अनुच्छेद 161 के अंतर्गत राज्य का राज्यपाल भी क्षमादान की शक्तियां रखता है। वह राज विधि के विरुद्ध अपराध में दोषी व्यक्ति की सजा को निलंबित कर सकता है दंड का स्वरूप बदल सकता है और दंड की अवधि कम कर सकता है। परंतु निम्नलिखित दो परिस्थितियों में, राज्यपाल की क्षमादान शक्तियां, राष्ट्रपति से भिन्न हैं-

 

• राष्ट्रपति सैन्य न्यायालय द्वारा दी गई सजा को क्षमा कर सकता है परंतु राज्यपाल नहीं।

• राष्ट्रपति मृत्युदंड को क्षमा कर सकता है परंतु राज्यपाल नहीं कर सकता। राज्य विधि द्वारा मृत्युदंड की सजा को क्षमा करने की शक्ति राष्ट्रपति में निहित है न कि राज्यपाल में।

क्षमा – पूर्णतः माफ़ कर देना (इसका तकनीकी मतलब यह है कि अपराध कभी हुआ ही नहीं)।

लघुकरण – सज़ा की प्रकृति को बदलना जैसे मृत्यु दंड को कठोर कारावास में बदलना।

परिहार – सज़ा की अवधि को बदलना जैसे 2 वर्ष के कठोर कारावास को 1 वर्ष के कठोर कारावास में बदलना।

  • विराम – विशेष परिस्थितियों की वजह से सज़ा को कम करना जैसे शारीरिक अपंगता या महिलाओं कि गर्भावस्था के कारण।
  • प्रविलंबन(reprieve)-किसी दंड को कुछ समय के लिए टालने की प्रक्रिया जैसे फांसी को कुछ समय के लिये टालना।
  • यह न्यायपालिका से स्वतंत्र कार्यपालिका की शक्ति है।
  • राष्ट्रपति /राज्यपाल इस शक्ति का प्रयोग केंद्रीय मंत्रिमंडल के परामर्श पर करेगा।
  • राष्ट्रपति /राज्यपाल अपने आदेश के कारण बताने के लिए बाध्य नहीं है।
  • राष्ट्रपति /राज्यपाल की इस शक्ति पर कोई भी न्यायिक समीक्षा नहीं की जा सकती सिवाय तब जब राष्ट्रपति/ राज्यपाल का निर्णय स्वेच्छाचारी, विवेकरहित, दुर्भावनापूर्ण अथवा भेदभावपूर्ण हो।
विवेकाधिकार (मंत्रियों के सलाह के बिना) निम्नलिखित स्थितियों में परिस्थितिजन्य विवेकाधिकार:

• लोकसभा /राज्य विधानसभा में किसी भी दल के पास स्पष्ट बहुमत न होने पर अथवा जब प्रधानमंत्री /मुख्यमंत्री की अचानक मृत्यु हो जाए तथा उसका कोई स्पष्ट उत्तराधिकारी ना हो, वह प्रधानमंत्री /मुख्यमंत्री की नियुक्ति करता है।

• वह मंत्रिमंडल को विघटित कर सकता है, यदि वह लोकसभा/ राज्य विधान सभा में विश्वास मत सिद्ध ना कर सके।

• वह लोकसभा/ राज्य विधान सभा को विघटित कर सकता है यदि मंत्रिमंडल ने अपना बहुमत खो दिया हो।

  • कोई संवैधानिक विवेकाधिकार नहीं
  • संवैधानिक विवेकाधिकार:

o राष्ट्रपति के विचारार्थ किसी विधेयक को आरक्षित करना।

o राज्य में राष्ट्रपति शासन की सिफारिश करना।

o पड़ोसी केंद्र शासित राज्य में (अतिरिक्त प्रभार की स्थिति में) बतौर प्रशासन के रूप में कार्य करते समय।

o असम मेघालय त्रिपुरा और मिजोरम की राज्यपाल द्वारा खनिज उत्खनन की रॉयल्टी के रूप में जनजातीय जिला परिषद को देय राशि का निर्धारण।

इसके अतिरिक्त कुछ विशेष मामलों में राष्ट्रपति के निर्देश पर राज्यपाल के विशेष उत्तरदायित्व होते हैं। ऐसे मामलों में राज्यपाल मुख्यमंत्री के नेतृत्व वाली मंत्रिपरिषद से परामर्श लेता है।

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