Explore Our Affordable Courses

Click Here
View Categories

उच्चतम न्यायालय (उड़ान)

9 min read

उच्चतम न्यायालय (उड़ान)

 

उच्चतम न्यायालय की संरचना: (अनुच्छेद 124)
  • भारतीय संविधान के भाग V में अनुच्छेद 124 से 147 तक उच्चतम न्यायालय के गठन का प्रावधान है।
  • न्यायालय की यह एकल व्यवस्था भारत सरकार अधिनियम 1935 से ग्रहण की गई है और यह केंद्रीय एवं राज्य विधियों को लागू कर सकती है।
  • भारत के उच्चतम न्यायालय का उद्घाटन 28 जनवरी 1950 को किया गया था तथा इसने ब्रिटेन के प्रिवी काउंसिल का स्थान ग्रहण किया था, जो अब तक अपील का सर्वोच्च न्यायालय था
  • इसमें कुल मिलाकर 34 न्यायाधीश हो सकते हैं (मुख्य न्यायाधीश तथा 33 अन्य न्यायाधीश)
  • उच्चतम न्यायालय (न्यायाधीशों की संख्या) संशोधन अधिनियम 2019 के अंतर्गत न्यायाधीश की कुल संख्या को 31 से बढ़ाकर 34 कर दिया गया है।
  • मुख्य न्यायाधीश की नियुक्ति राष्ट्रपति उच्चतम न्यायालय के अन्य न्यायाधीशों एवं उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की सलाह के बाद करता है।
  • इसी तरह उच्चतम न्यायालय के अन्य न्यायाधीशों की नियुक्ति भी राष्ट्रपति मुख्य न्यायाधीश तथा अन्य न्यायाधीशों की सलाह के बाद करता है।
  • मुख्य न्यायाधीश के अतिरिक्त अन्य न्यायाधीशों की नियुक्ति में मुख्य न्यायाधीश का परामर्श आवश्यक होता है।

 

सहमति बनाम परामर्श :
  • प्रथम न्यायाधीश मामले (1982): परामर्श का मतलब सहमति नहीं, वरन विचारों का आदान प्रदान है।
  • द्वितीय न्यायाधीश मामले (1993): परामर्श का मतलब सहमति प्रकट करना है। न्यायाधीशों की नियुक्ति के मामले में उच्चतम न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश द्वारा दी गई सलाह को मानने के लिए राष्ट्रपति बाध्य होगा (लेकिन मुख्य न्यायाधीश यह सलाह अपने दो वरिष्ठ सहयोगियों से विचार-विमर्श करने के बाद देगा)।
  • तीसरे न्यायाधीश मामले (1998): परामर्श प्रक्रिया को मुख्य न्यायाधीश द्वारा ‘बहुसंख्यक न्यायाधीशों की विचार’ प्रक्रिया के तहत माना जाएगा। भारत के मुख्य न्यायाधीश को उच्चतम न्यायालय के चार वरिष्ठ न्यायाधीशों से सलाह करनी चाहिए (इनमें से अगर दो का भी मत भी पक्ष में नहीं है तो वह नियुक्ति के लिए सिफारिश नहीं भेज सकता)।
  • 99वां संविधान संशोधन अधिनियम, 2014 तथा राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग (एनजेएसी) को वर्ष 2015 में अमान्य ठहराते हुए असंवैधानिक घोषित कर दिया।

 

भारत के मुख्य न्यायाधीश की नियुक्ति

वरिष्ठतम न्यायाधीश को बतौर मुख्य न्यायाधीश नियुक्त किया जाता था।(1950-1973) à बाद में इस व्यवस्था को खत्म कर दिया गया à दूसरे न्यायाधीश मामले (1993): इसमें उच्चतम न्यायालय ने यह व्यवस्था दी कि उच्चतम न्यायालय के वरिष्ठत्तम न्यायाधीश को ही भारत का मुख्य न्यायाधीश नियुक्त किया जाना चाहिए।

न्यायाधीशों की अर्हताएं

• उसे भारत का नागरिक होना चाहिए।

• उसे किसी उच्च न्यायालय का कम से कम 5 साल के लिए न्यायाधीश होना चाहिए , या

• उसे उच्च न्यायालय या विभिन्न न्यायालयों में मिलाकर 10 वर्ष तक वकील होना चाहिए या राष्ट्रपति के मत में उसे सम्मानित न्यायवादी होना चाहिए (उच्च न्यायालय के लिए ऐसी कोई शर्त नहीं है)।

• कोई न्यूनतम आयु का उल्लेख नहीं है।

शपथ या प्रतिज्ञान 1. उच्चतम न्यायालय के लिए नियुक्त न्यायाधीश को अपना कार्यकाल संभालने से पूर्व राष्ट्रपति या इस कार्य के लिए उसके द्वारा नियुक्त व्यक्ति के सामने शपथ लेनी होगी ।
वेतन एवं भत्ते उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीशों का वेतन, भत्ते, विशेषाधिकार, अवकाश एवं पेंशन का निर्धारण समय-समय पर संसद द्वारा किया जाता है।

न्यायाधीशों का कार्यकाल

• संविधान में उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीशों का कार्यकाल तय नहीं किया गया है।

• इसके लिए तीन उपबंध बनाए गए हैं : वह 65 वर्ष की आयु तक इस पद पर बना रह सकता है। उसके मामले में किसी प्रश्न के उठने पर संसद द्वारा स्थापित संस्था इसका निर्धारण करेगी। + वह राष्ट्रपति को लिखित त्यागपत्र दे सकता है। + संसद की सिफारिश पर राष्ट्रपति द्वारा उसे पद से हटाया जा सकता है।

 

 

न्यायाधीशों को हटाना

 

• उसे राष्ट्रपति के आदेश द्वारा उसके पद से हटाया जा सकता है।

• राष्ट्रपति ऐसा तभी कर सकता है, जब इस प्रकार हटाये जाने हेतु संसद द्वारा उसी सत्र में ऐसा संबोधन किया गया हो।

• हटाने का आधार : अक्षमता या सिद्ध कदाचार

• न्यायाधीश जांच अधिनियम (1968) उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीशों को हटाने के संबंध में महाभियोग की प्रक्रिया का उपबंध करता है।

 

 

 

 

न्यायाधीश जांच अधिनियम 1968:

 

  • निष्कासन प्रस्ताव : 100 सदस्यों (लोकसभा) या 50 सदस्यों (राज्यसभा) द्वारा हस्ताक्षर करने के बाद à अध्यक्ष/सभापति को दिया जाना चाहिए।
  • अगर अध्यक्ष/सभापति इस प्रस्ताव को शामिल कर लेते हैं। à इसकी जांच के लिए उनके द्वारा तीन सदस्यीय समिति का गठन किया जाएगा।
  • समिति : मुख्य न्यायाधीश या उच्चतम न्यायालय का कोई न्यायाधीश + किसी उच्च न्यायालय का मुख्य न्यायाधीश + प्रतिष्ठित न्यायवादी।
  • अगर उन्हें दोषी पाया जाता है à तो सदन इस प्रस्ताव पर विचार कर सकता है।
  • विशेष बहुमत से दोनों सदनों में प्रस्ताव पारित कर इसे राष्ट्रपति को भेजा जाता है।
  • अंत में राष्ट्रपति के द्वारा न्यायाधीश को हटाने का आदेश जारी कर दिया जाता है।
  • उच्चतम न्यायालय के किसी भी न्यायाधीश पर अभी तक महाभियोग नहीं लगाया गया है।
कार्यकारी मुख्य न्यायाधीश : • राष्ट्रपति किसी न्यायाधीश को भारत के उच्चतम न्यायालय का कार्यकारी मुख्य न्यायाधीश तब नियुक्त कर सकता है जब : पद रिक्त हो; अस्थाई रूप से अनुपस्थित हो; अपने दायित्वों के निर्वहन में असमर्थ हो।

तदर्थ न्यायाधीश :

• जब किसी सत्र को पूरा करने के लिए कोरम पूरा करने में स्थाई न्यायाधीशों की संख्या कम हो रही हो, à भारत का मुख्य न्यायाधीश किसी उच्च न्यायालय के किसी न्यायाधीश को अस्थाई काल के लिए उच्चतम न्यायालय में तदर्थ न्यायाधीश नियुक्त कर सकता है (ऐसा वह संबंधित उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश के परामर्श एवं राष्ट्रपति की पूर्व मंजूरी के बाद ही कर सकता है।)

• तदर्थ न्यायाधीश = उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश के न्यायक्षेत्र शक्तियां और विशेषाधिकार।

सेवानिवृत्त न्यायाधीश: • किसी भी समय भारत का मुख्य न्यायाधीश उच्चतम न्यायालय या उच्च न्यायालय के सेवानिवृत्त न्यायाधीश से अल्पकाल के लिए उच्चतम न्यायालय में कार्य करने का अनुरोध कर सकता है।
उच्चतम न्यायालय का स्थान (अनुच्छेद 130): दिल्ली (संविधान के अनुसार) + मुख्य न्यायाधीश को यह अधिकार है कि उच्चतम न्यायालय का स्थान कहीं और निर्धारित कर सकता हैं + राष्ट्रपति की पूर्व अनुमति जरूरी।

न्यायालय की प्रक्रिया :

o उच्चतम न्यायालय + राष्ट्रपति की मंजूरी के बाद न्यायालय की प्रक्रिया और संचालन हेतु नियम बना सकता है।

o संवैधानिक मामले + अनुच्छेद 143 = कम से कम पांच न्यायाधीशों की पीठ के द्वारा निर्णित किया जाता है।

o सभी निर्णय = बहुमत के आधार पर

• अगर मत भिन्नता हो तो न्यायाधीश इस असहमति का कारण बता सकता है।

उच्चतम न्यायालय की स्वतंत्रता:

o नियुक्ति का तरीका : न्यायाधीशों की नियुक्ति न्यायपालिका खुद करती है।

o कार्यकाल की सुरक्षा : उन्हें संविधान में उल्लिखित प्रावधानों के जरिए ही सिर्फ राष्ट्रपति के द्वारा हटाया जा सकता है।

o निश्चित सेवा शर्तें : उनकी नियुक्ति के बाद न्यायाधीशों के वेतन, भत्ते, अवकाश, विशेषाधिकार, पेंशन को उनके लिए प्रतिकूल ढंग से निर्मित नहीं किया जा सकता सिवाय वित्तीय आपातकाल के दौरान (अनुच्छेद 360)।

o सभी खर्च भारत की संचित निधि पर भारित होते हैं।

o न्यायाधीशों के आचरण पर बहस नहीं हो सकती : महाभियोग के अतिरिक्त न्यायाधीशों के आचरण पर संसद में या राज्य विधानमंडल में बहस नहीं हो सकती।

o सेवानिवृत्ति के बाद वकालत पर रोक : उच्चतम न्यायालय तथा अन्य उच्च न्यायालय को छोड़कर।

o अपने अधिकारियों एवं कर्मचारियों को नियुक्त करने की स्वतंत्रता।

o इसके न्यायक्षेत्र में कटौती नहीं की जा सकती : लेकिन संसद इसमें वृद्धि कर सकती है।

• कार्यपालिका से पृथक्करण।

 

उच्चतम न्यायालय की शक्तियां एवं क्षेत्राधिकार

 

मूल क्षेत्राधिकार (अनुच्छेद 131):

निम्नलिखित के बीच विवादों पर निर्णय देता है :

o राज्य एवं केंद्र

o दो या अधिक राज्यों के बीच

o केंद्र और कोई राज्य या राज्यों का एक तरफ होना एवं एक या अधिक राज्यों का दूसरी तरफ होना।

  • ऐसे मामलों की सुनवाई का अधिकार सिर्फ उच्चतम न्यायालय के पास ही है ] – ‘विशेष मूल’ न्यायक्षेत्र।
  • राजनीतिक प्रकृति के प्रश्नों से बचा जाता है।
  • विवादों में किसी प्रश्न का होना जरूरी है। (चाहे वह कानून हो या तथ्य)
  • कोई विवाद जो किसी पूर्व संवैधानिक संधि, समझौता, प्रसंविदा, सनद एवं अन्य समान संस्थाओं को लेकर उत्पन्न हुआ हो।
  • कोई विवाद जो संधि, समझौते आदि के बाहर पैदा हुआ हो जिसमें विशेष तौर पर यह व्यवस्था हो कि संबंधित न्यायक्षेत्र उस विवाद से संबंधित नहीं है।
  • अंतर्राजीय राज्य जल विवाद।
  • वित्त आयोग आदि के संदर्भ वाले मामले।

न्यायादेश क्षेत्राधिकार (अनुच्छेद 32):

• पीड़ित सीधे उच्चतम न्यायालय में जा सकता है।

• लेकिन यह विशेषाधिकार नहीं है। (उच्च न्यायालय भी न्यायदेश जारी कर सकते हैं)

• सिर्फ मूल अधिकारों के क्रियान्वयन के लिए (कानूनी अधिकारों के लिए नहीं – न्यायादेश न्यायक्षेत्र के मसले पर उच्च न्यायालय से कम)।

• न्यायाधीश न्यायाक्षेत्र के मसले पर उच्च न्यायालय का क्षेत्र उच्चतम न्यायालय की तुलना में ज्यादा विस्तृत है।

नोट – उच्चतम न्यायालय केवल मूल अधिकारों के क्रियान्वयन के संबंध में ही न्यायादेश जारी कर सकता है तथा “अन्य उद्देश्य से नहीं ”। इसका मतलब है कि न्यायादेश न्यायाक्षेत्र के मसले पर उच्च न्यायालय का क्षेत्र ज़्यादा विस्तृत है।

अपीलीय क्षेत्राधिकार :

अपीलीय न्यायक्षेत्र : संवैधानिक मामले + उच्च न्यायालय के फैसले के खिलाफ अपील + दीवानी मामले + अपराधिक मामले + अपील के लिए विशेष अनुमति।

संवैधानिक मामले : उच्च न्यायालय के फैसले के खिलाफ, अगर मामले में विधि का पूरक प्रश्न निहित है जिसमें संविधान की व्याख्या की जरूरत हो।

दीवानी मामले : उच्चतम न्यायालय में किसी मामले को तब लाया जा सकता है जब : मामला सामान्य महत्व के पूरक प्रश्न पर आधारित हो + ऐसा प्रश्न हो जिसका निर्णय उच्चतम न्यायालय द्वारा किया जाना आवश्यक हो।

अपराधिक मामले : उच्चतम न्यायालय उच्च न्यायालय के अपराधिक मामलों के फैसलों के खिलाफ सुनवाई करता है यदि उच्च न्यायालय ने :

a.

अधिकारों का मामला

आरोपी व्यक्ति के दोषमोचन के आदेश को पलट दिया हो तथा उसे सजा ए मौत दी हो।

b. किसी अधीनस्थ न्यायालय से मामला लेकर आरोपी व्यक्ति को दोषसिद्ध किया हो तथा उसे सजा मौत दी हो

c. यह प्रमाणित करें कि संबंधित मामला उच्चतम न्यायालय में ले जाने योग्य है।

अगर उच्च न्यायालय ने बंदीकरण के आदेश को पलट कर आरोपी को दोषमुक्त करने का आदेश दिया हो तो उच्चतम न्यायालय में अपील का कोई अधिकार नहीं होगा।

 

 

 

अपील के लिए विशेष अनुमति (अनुच्छेद 136)

• न्यायालय को इस बात का अधिकार है कि वह अपना मत विशेष अनुमति प्राप्त अपील को दे जो कि किसी भी फैसले से संबंधित मामले से जुड़ी हो। फैसला किसी भी न्यायालय या अधिकरणों से संबंधित हों।

अपवाद : कोर्ट मार्शल या सैन्य अदालत

4 पहलू होते हैं : यह एक विवेकानुसार शक्ति है तथा अधिकार नहीं + किसी भी फैसले में इसका मत या तो अंतिम होता है या अंतरिम + किसी भी मामले से संबंधित हो सकता है : संवैधानिक, दीवानी, अपराधिक, आयकर, श्रम, राजस्व, वकील आदि + किसी भी न्यायालय या अधिकरण के खिलाफ किया जा सकता है, केवल उच्च न्यायालय के खिलाफ ही जरूरी नहीं है à इसका प्रयोग सावधानी के साथ विशेष परिस्थितियों में ही किया जाता है।

सलाहकार क्षेत्राधिकार (अनुच्छेद 143):

राष्ट्रपति à उच्चतम न्यायालय (राय देता है ) à राष्ट्रपति

राष्ट्रपति को निम्न दो श्रेणी के मामलों में उच्चतम न्यायालय से राय लेने का अधिकार है :

• सार्वजनिक महत्व के किसी मसले या तथ्य पर विधिक पश्न उठने या संभावित रूप से उठने पर à उच्चतम न्यायालय अपना मत दे भी सकता है और देने से इनकार भी कर सकता है।

• किसी पूर्व संवैधानिक संधि, समझौते, संविधान आदि सनद मामलों पर किसी विवाद के उत्पन्न होने पर à उच्चतम न्यायालय द्वारा मत देना अनिवार्य है।

नोट : राष्ट्रपति इस सलाह को मानने के लिए बाध्य नहीं होता है

अभिलेख का न्यायालय :

उच्चतम न्यायालय की कार्यवाही एवं उसके फैसले सार्वकालिक अभिलेख व साक्ष्य के रूप में रखे जाएंगे :

o इन अभिलेखों पर किसी भी न्यायालय के द्वारा प्रश्न नहीं उठाया जा सकता।

o उन्हें विधिक संदर्भ की तरह स्वीकार किया जाएगा

न्यायालय की अवमानना पर दंडित करने का अधिकार : 2 वर्ष के लिए सामान्य जेल / ₹2000 तक का अर्थदंड या दोनों।

 

न्यायालय की अवमानना :

  • सिविल अवमानना : स्वेच्छा से किसी फैसले आदेश न्यायादेश की अवहेलना करना या अदालत को दिए गए किसी वचन(अंडरटेकिंग) का स्वेच्छा से उल्लंघन।
  • आपराधिक अवमानना : किसी ऐसी सामग्री का प्रकाशन और ऐसा कार्य करना जिसमें à जिसमें न्यायालय की स्थिति को कमतर आंकना या उसको बदनाम करना + न्यायिक कार्यवाही या प्रक्रिया में किसी भी तरीके से बाधा पहुंचाना + न्याय प्रशासन को किसी भी तरीके से रोकना।
  • ये चीजें न्यायालय की अवमानना में नहीं आती : किसी मामले का निर्दोष प्रकाशन और उसका वितरण + न्यायिक कार्यवाही की उचित रिपोर्ट + न्यायिक कार्यवाहियों की उचित व निष्पक्ष आलोचना + प्रशासनिक दिशा से इस पर टिप्पणी।
न्यायिक समीक्षा : उच्चतम न्यायालय संविधान का अंतिम व्याख्याता है।

अन्य शक्तियां :

  • यह राष्ट्रपति एवं उपराष्ट्रपति के निर्वाचन के संबंध में किसी प्रकार के विवाद का निपटारा करता है। इस संबंध में यह मूल, विशेष एवं अंतिम व्यवस्थापक है।
  • यह संघ लोक सेवा आयोग के अध्यक्ष एवं सदस्यों के व्यवहार एवं आचरण की जांच करता है, उस संदर्भ में जिसे राष्ट्रपति द्वारा निर्मित किया गया है à उच्चतम न्यायालय द्वारा दी गई इस सलाह को मानने के लिए राष्ट्रपति बाध्य होता है।
  • इसे अपने स्वयं के फैसले या आदेशों की समीक्षा करने की शक्ति है।
  • इसकी विधियां भारत के सभी न्यायालयों के लिए बाध्य होंगी।

 

नोट : उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश एवं शक्तियों को केंद्रीय सूची से संबंधित मामलों पर संसद द्वारा विस्तारित किया जा सकता है।

Download October 2024 Current Affairs.   Srijan 2025 Program (Prelims+Mains) !     Current Affairs Plus By Sumit Sir   UPSC Prelims2025 Test Series.    IDMP – Self Study Program 2025.

 

THE MOST
LEARNING PLATFORM

Learn From India's Best Faculty

      

Download October 2024 Current Affairs.   Srijan 2025 Program (Prelims+Mains) !     Current Affairs Plus By Sumit Sir   UPSC Prelims2025 Test Series.    IDMP – Self Study Program 2025.

 

Quick Revise Now !
AVAILABLE FOR DOWNLOAD SOON
UDAAN PRELIMS WALLAH
Comprehensive coverage with a concise format
Integration of PYQ within the booklet
Designed as per recent trends of Prelims questions
हिंदी में भी उपलब्ध
Quick Revise Now !
UDAAN PRELIMS WALLAH
Comprehensive coverage with a concise format
Integration of PYQ within the booklet
Designed as per recent trends of Prelims questions
हिंदी में भी उपलब्ध

<div class="new-fform">







    </div>

    Subscribe our Newsletter
    Sign up now for our exclusive newsletter and be the first to know about our latest Initiatives, Quality Content, and much more.
    *Promise! We won't spam you.
    Yes! I want to Subscribe.