Win up to 100% Scholarship

Register Now

स्थानीय स्वशासन: पंचायत और नगरपालिकाएँ (उड़ान)

स्थानीय स्वशासन: पंचायत और नगरपालिकाएँ (उड़ान)

  • संवैधानिक स्थिति: 73 वां और 74 वां संविधान संशोधन अधिनियम, 1992 द्वारा इसे संविधान में शामिल किया गया था।
  • स्थानीय स्वशासन, सातवीं अनुसूची के तहत राज्य सूची का विषय है।
  • अनुच्छेद 40 –“राज्य ग्राम पंचायतों का संगठन करने के लिए कदम उठाएगा और उनको ऐसी शक्तियां और प्राधिकार प्रदान करेगा जो उन्हें स्वायत्त शासन की इकाइयों के रूप में कार्य करने योग्य बनाने के लिए आवश्यक हों|”
  • राजस्थान पंचायती राज प्रणाली की स्थापना करने वाला पहला राज्य था। इस योजना का उद्घाटन 2 अक्टूबर, 1959 को तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने नागौर जिले में किया था।
  • शहरी स्थानीय शासन की देखरेख : – आवास और शहरी गरीबी उपशमन मंत्रालय + रक्षा मंत्रालय + गृह मंत्रालय।

पंचायती राज का विकास:

वर्ष समिति अनुशंसाएं
1957 बलवंत राय मेहता समिति: सामुदायिक विकास कार्यक्रम (1952) और राष्ट्रीय विस्तार सेवा (1953) द्वारा किए गए कार्यों की समीक्षा करना।
  • त्रिस्तरीय व्यवस्था को आपनाना।
  • जिला स्तर पर योजना और विकास के कार्य इन निकायों को सौंपना।
  • जिला अधिकारी को जिला परिषद का अध्यक्ष होना चाहिए।

1977 अशोक मेहता समिति (पंचायती राज संस्थाओं पर गठित समिति)
  • द्विस्तरीय व्यवस्था को अपनाना।
  • कार्यकारी निकाय : जिला परिषद होना चाहिए।
  • इसे संवैधानिक मान्यता की सिफारिश करना चाहिए।
  • न्याय पंचायत को विकास पंचायत से अलग निकाय के रूप में रखा जाना चाहिए।
  • जिला स्तर पर योजना और विकास के कार्य को इन निकायों को सौंपना।
  • विकास के कार्य जिला परिषद को स्थानांतरित होने चाहिए।
  • पंचायती राज संस्थाओं के मामलों की देखरेख के लिए राज्य मंत्री परिषद में एक मंत्री की नियुक्ति होनी चाहिए
  • उनकी जनसंख्या के आधार पर अनुसूचित जाति व जनजाति के लिए स्थान आरक्षित होना चाहिए।
  • पंचायती राज संस्थाओं को संवैधानिक मान्यता दी जानी चाहिए| इससे उन्हें उपयुक्त हैसियत (पवित्रता एवं महत्ता) के साथ ही सतत सक्रियता का आश्वासन मिलेगा।
1978 दंतेवाला समिति:
  • ब्लॉक स्तर की योजना पर ज़ोर दिया।
1984 हनुमान राव समिति • जिला योजना पर जोर दिया |
1985 जी.वी.के.राव समिति: ग्रामीण विकास एवं निर्धनता उन्मूलन कार्यक्रमों की समीक्षा करना।
  • जिला परिषद की महत्वपूर्ण भूमिका होनी चाहिए।
  • जिला और स्थानीय स्तर पर पंचायती राज संस्थाओं को विकास कार्यों के नियोजन क्रियान्वयन एवं निगरानी में महत्वपूर्ण भूमिका प्रदान की जानी चाहिए|
  • जिला विकास आयुक्त के पद का सृजन, इसे जिला परिषद के मुख्य कार्यकारी अधिकारी के रूप में कार्य करना चाहिए|
1986 एल.एम. सिंघवी समिति: लोकतंत्र व विकास के लिए पंचायती राज संस्थाओं का पुनरुद्धार करना।

  • त्रिस्तरीय व्यवस्था को अपनाना।
  • जिला परिषद ने योजना और विकास के लिए प्रशासनिक ढांचे को एकीकृत किया।
  • जिला विकास आयुक्त को जिला परिषद का मुख्य कार्यकारी अधिकारी होना चाहिए।
  • पंचायती राज्य संस्थाओं को संवैधानिक दर्जा दिया जाए और संविधान में इसके लिए अलग अध्याय को जोड़ा जाए तथा इन संस्थाओं के नियमित चुनाव के लिए संविधान में प्रावधान किया जाए|
  • जिला स्तर पर योजना और विकास के कार्य को इन निकायों को सौंपना।

इस समिति ने निष्कर्ष निकाला कि विकास प्रक्रिया को धीरेधीरे नौकरशाही और पंचायती राज से अलग कर दिया जाना चाहिए इसलिए पीआरआई कोबिना जड़ों वाली घासकहा गया।

1988 पी. के. थुंगन समिति:
  • त्रिस्तरीय व्यवस्था को अपनाना।
  • जिला परिषद : योजना और विकास का कार्य सौंपना।
  • 5 वर्ष का निश्चित कार्यकाल होना चाहिए।
  • महिलाओं के लिए आरक्षण का प्रावधान करना चाहिए।
  • जिला अधिकारीजिला परिषद का मुख्य कार्यकारी अधिकारी होगा।
1988 गाडगिल समिति: नीति और कार्यक्रमों पर समिति।
  • त्रिस्तरीय व्यवस्था को अपनाना।
  • कार्यकारी निकाय: पंचायत समिति
  • संवैधानिक दर्जा प्रदान करने की सिफारिश की।
  • जिला स्तर पर योजना और विकास के कार्य को इन निकायों को सौंपना।
  • पंचायत के सभी तीन स्तरों के सदस्यों का प्रत्यक्ष निर्वाचन होना चाहिए
  • पंचायती राज संस्थाओं का कार्यकाल 5 वर्ष निश्चित कर दिया जाए।

नगर निकायों का विकास:

1687 भारत का पहला नगर निगम मद्रास में स्थापित हुआ था।
1726 बंबई और कलकत्ता नगर निगम
1870 वित्तीय विकेंद्रीकरण पर लॉर्ड मेयो का संकल्प
1882 लॉर्ड रिपन संकल्प स्थानीय स्वशासन का मैग्नाकार्टा
1907 विकेंद्रीकरण पर रॉयल कमीशन
1919 भारत सरकार अधिनियम, 1919 के द्वारा, स्थानीय स्वशासन को एक हस्तांतरित विषय बना दिया गया।
1924 छावनी( Cantonment) अधिनियम
1935 भारत सरकार अधिनियम,1919 के द्वारा स्थानीय स्वशासन को प्रांतीय विषय घोषित किया गया।

 

पंचायत ( 73वां संविधान संशोधन अधिनियम, 1992)

संवैधानिक प्रावधान:

  • ग्रामीण स्थानीय स्वशासन की स्थापना।
  • 11वीं अनुसूची – (29 कार्य) + भाग IX; अनुच्छेद 243 से 243O तक।
  • महत्वपूर्ण अनुच्छेद:

o 243Gपंचायतों की शक्तियां, प्राधिकार तथा उत्तरदायित्व

o 243Hपंचायतों की करारोपण की शक्ति

o 243 Iवित्त आयोग

ग्राम सभा: प्रत्यक्ष लोकतंत्र का प्रतीक + गाँव के सभी मतदाता इसके सदस्य होते हैं + कार्यों का निर्धारण राज्य विधायिका द्वारा किया जाता है।

त्रिस्तरीय पंचायत प्रणाली:

• पूरे देश में पंचायती राज की संरचना में समरूपता लाना।

• ग्राम, मध्यवर्ती तथा जिला स्तर पर पंचायत का गठन।

20 लाख से कम जनसंख्या वाले राज्य मध्यवर्ती स्तर पर पंचायत का गठन नहीं कर सकते हैं।

• तीनों स्तरों पर पंचायतों के सभी सदस्य लोगों द्वारा प्रत्यक्ष चुने जाएंगे|

अध्यक्ष: इनका चुनाव राज्य के विधानमंडल द्वारा निर्धारित तरीके से किया जाएगा।

· सभी तीन स्तरों पर आरक्षणअनुसूचित जाति / जनजाति (जनसंख्या के आधार पर) के लिए सीटों का आरक्षण+ महिलाओं (एक तिहाई आरक्षण) के लिए आरक्षण।

• अनुसूचित जाति के लिए आरक्षण का प्रावधान अरुणाचल प्रदेश में लागू नहीं होता।

• कार्यकाल: पांच वर्ष

• एक पंचायत जो समय पूर्व भंग होने पर पुनर्गठित हुई है वह पूरे 5 वर्ष की निर्धारित अवधि तक कार्यरत नहीं होती, बल्कि केवल बचे हुए समय के लिए ही कार्यरत होती है।

अनर्हताएं:

कोई भी व्यक्ति पंचायत का सदस्य नहीं बन पाएगा यदि वह निम्न प्रकार से अनर्हत होगा :

1. राज्य विधानमंडल के लिए निर्वाचित होने के उद्देश्य से संबंधित राज्य में उस समय प्रभावी कानून के अंतर्गत, अथवा

2. राज्य विधानमंडल द्वारा बनाए गए किसी भी कानून के अंतर्गत

3. लेकिन किसी भी व्यक्ति इस आधार पर अयोग्य घोषित नहीं किया जाएगा कि वे 25 वर्ष से कम आयु का है, यदि वह 21 वर्ष की आयु पूरा कर चुका है।

राज्य चुनाव आयोग

(अनुच्छेद 243 K):

• पंचायत स्तर के सभी चुनावों का संचालन राज्य निर्वाचन आयोग करता है।

• राज्य निर्वाचन आयुक्त की सेवा शर्तें और पदावधि भी राज्यपाल द्वारा निर्धारित की जाएंगी।

• राज्य चुनाव आयुक्त की नियुक्ति के बाद उसकी सेवा शर्तों में ऐसा कोई परिवर्तन नहीं किया जाएगा जिससे उसका नुकसान हो|

शक्तियां, कार्य और वित्त संबंधित मामलों का राज्य द्वारा निर्धारण ग्यारहवीं अनुसूची में शामिल 29 मामलों को पंचायतों को हस्तांतरित किया जा सकता है।

• आर्थिक विकास और सामाजिक न्याय के लिए योजनाओं की तैयारी और कार्यान्वयन करना।

वित्त: राज्य विधानमंडल पंचायतों को उपयुक्त कर लगाने के लिए अधिकृत कर सकती है, राज्य सरकार द्वारा आरोपित और संग्रहित कर पंचायतों को सौंप सकती है तथा राज्य की समेकित निधि से पंचायतों को अनुदान सहायता दे सकती है।

राज्य वित्त आयोग

राज्य का राज्यपाल प्रत्येक 5 वर्ष के पश्चात पंचायतों की वित्तीय स्थिति की समीक्षा के लिए वित्त आयोग का गठन करता है।

• संरचना + योग्यता: राज्य विधायिका द्वारा निर्धारित किया जाता है।

• केंद्रीय वित्त आयोग भी राज्य में पंचायतों के पूरक स्रोतों में वृद्धि के लिए राज्य की समेकित निधि में आवश्यक उपायों के बारे में सलाह देगा|

अन्य प्रावधान

लेखा परीक्षण: राज्य विधायिका निर्धारित करती है।

अनर्हत याचिकाएँ: राज्य विधायिका निर्धारित करती है।

संघ राज्य क्षेत्रों पर लागू होना : राष्ट्रपति अधिनियम के प्रावधान को लागू करने के लिए निर्देश दे सकता है।

छूट प्राप्त राज्य व क्षेत्र नागालैंड, मिजोरम, मेघालय और कुछ अन्य (मणिपुर और दार्जिलिंग के पहाड़ी क्षेत्र) विशेष क्षेत्रों पर लागू नहीं होता।

1996 का पेसा (PESA) अधिनियम:

• पांचवीं अनुसूची में वर्णित क्षेत्रों में भाग-9 के प्रावधान लागू नहीं होते। हालांकि संसद इन प्रावधानों को कुछ अपवादों तथा संशोधनों सहित उक्त क्षेत्रों पर लागू कर सकती है।

• पारंपरिक प्रथाओं के अनुरूप स्वशासन प्रदान करना।

नगर निगम ( 74वां संविधान संशोधन, 1992)

संवैधानिक प्रावधान:

  • शहरी स्थानीय स्वशासन
  • अनुसूची 12- (18 कार्य) + भाग IX A + अनुच्छेद 243 P -243 ZG
  • महत्वपूर्ण अनुच्छेद:

o 243 W नगर पालिकाओं की शक्तियां, प्राधिकार एवं दायित्व।

o 243 X नगर पालिका द्वारा करारोपण की शक्तियां तथा निधि इत्यादि।

o 243 Y वित्त आयोग

o 243 Zजिला योजना समिति

o 243 ZE महानगरीय आयोजना के लिए समिति।

तीन प्रकार की नगरपालिकाएं:

1. नगर पंचायत (ग्रामीण से शहरी क्षेत्र में परिवर्तन)

2. नगर पालिका परिषद (छोटे शहरी क्षेत्रों के लिए)

3. नगरपालिका निगम (बड़े शहरी क्षेत्रों के लिए)

वार्ड समिति: तीन लाख या अधिक जनसंख्या वाली नगरपालिका के क्षेत्र के तहत एक या अधिक वार्डों को मिलाकर वार्ड समिति गठित होगी

चुनाव:

  • नगरपालिका के अध्यक्ष के निर्वाचन का तरीका, राज्य विधानमंडल प्रदान कर सकता है।
  • अनुसूचित जाति / जनजाति (जनसंख्या के आधार पर) के लिए सीटों का आरक्षण।
  • एक तिहाई महिला आरक्षण दिया जाना।
  • अध्यक्ष और पिछड़ी जातियों के आरक्षण के संबंध में राज्य विधायिका कोई भी उपबंध बना सकती है।

कार्य:

  • 12 वीं अनुसूची – 18 कार्य, जो राज्य विधानमंडल द्वारा नगरपालिकाओं को हस्तांतरित किए जा सकते हैं।
  • अन्य कार्य: पंचायत के समान ही होता है।

नगर पालिका के प्रकार:

  • नगर निगम: संबंधित राज्य विधानमंडल की विधि द्वारा राज्यों में स्थापना ( केंद्र शासित क्षेत्र के संदर्भ में भारत की संसद द्वारा) à प्रशासनिक ढांचा: महापौर( मेयर) की अध्यक्षता वाली परिषद, स्थायी समिति तथा नगर आयुक्त।
  • नगर पालिका : नगरपालिकाएं कस्बों और छोटे शहरों के प्रशासन के लिए स्थापित की जाती हैं, राज्य में राज्य विधानमंडल द्वारा निर्मित अधिनियम से गठन à प्रशासनिक ढांचा: परिषद (प्रधान अध्यक्ष), स्थायी समिति तथा मुख्य कार्यकारी अधिकारी।
  • अधिसूचित क्षेत्र समिति: दो प्रकार के क्षेत्रों में औद्योगीकरण के कारण विकासशील कस्बा और वह कस्बा जिसने अभी तक नगर पालिका के गठन की आवश्यक शर्तें पूरी नहीं की हो, लेकिन राज्य सरकार द्वारा वह महत्वपूर्ण माना जाए| क्योंकि इसे सरकारी राजपत्र में प्रकाशित कर अधिसूचित किया जाता है, इसलिए इसे अधिसूचित क्षेत्र समिति के रूप में जाना जाता है। यह पूरी तरह से नामित इकाई है|
  • नगर क्षेत्रीय समिति : यह छोटे कस्बे में प्रशासन के लिए गठित की जाती है| यह विधानमंडल के एक पृथक अधिनियम द्वारा गठित की जाती है, इसे पूर्ण या आंशिक रूप से राज्य सरकार द्वारा निर्वाचित या नामित किया जा सकता है।
  • छावनी परिषद : इसे 2006 के छावनी अधिनियम के प्रावधानों के तहत स्थापित किया गया है। यह विधान केंद्र सरकार द्वारा निर्मित किया गया है + केंद्रीय रक्षा मंत्रालय के प्रशासनिक नियंत्रण के अधीन कार्य करती है, छावनी परिषद में आंशिक रूप से निर्वाचित या नामित सदस्य शामिल होते हैं।
  • नगरीय क्षेत्र: इस तरह का शहरी प्रशासन वृहत सार्वजनिक उपक्रमों द्वारा स्थापित किया जाता है + जो उद्योगों के निकट बनी आवासीय कॉलोनियों में रहने वाले अपने कर्मचारियों को सुविधाएं प्रदान करते हैं|
  • न्यास पत्तन: इनका गठन संसद के एक अधिनियम द्वारा किया गया है, इसमें निर्वाचित और गैर निर्वाचित दोनों प्रकार के सदस्य सम्मिलित हैं।
  • विशेष उद्देश्य हेतु अभिकरण : राज्य द्वारा विशिष्ट उद्देश्य के लिए इसका गठन किया जाता है, अर्थात ये कार्य आधारित संगठन होते हैं , क्षेत्र आधारित नहीं।

जिला योजना समिति (DPC):
  • राज्य विधायिका इसके चुनाव की प्रक्रिया निर्धारित करती है।
  • अनुच्छेद 243ZD: पंचायतों और नगरपालिकाओं द्वारा तैयार योजना को संगठित करेगी और जिला स्तर पर एक विकास योजना का प्रारूप तैयार करेगी।
  • जिला योजना समिति के 4/5 भाग सदस्य जिला पंचायत और नगरपालिकाओं के निर्वाचित सदस्यों द्वारा स्वयं में से चुने जाएंगे।
  • 1 / 5 सदस्य मनोनीत किए जाते हैं।
  • समिति के सदस्यों की संख्या जिले की ग्रामीण एवं शहरी जनसंख्या के अनुपात में होनी चाहिए।

 

महानगरीय योजना समिति (243ZE):
  • महानगरीय क्षेत्रदेश का वह क्षेत्र, जहाँ की जनसंख्या 10 लाख से ऊपर है (अनुच्छेद 243P)
  • एक मसौदा विकास योजना तैयार करना।
  • महानगरीय योजना समिति के 2/3 सदस्य महानगर क्षेत्र में नगरपालिका के निर्वाचित सदस्यों तथा पंचायतों के अध्यक्षों द्वारा स्वंय में से चुने जाएंगे।
  • 1 / 3 सदस्य नामांकित किए जाएंगे।
  • निर्वाचित सदस्य ग्रामीण और शहरी जनसंख्या के अनुपात में होने चाहिए।

स्थानीय सरकार की केंद्रीय परिषद :
  • इसकी स्थापना 1954 में,राष्ट्रपति के आदेश से भारत के संविधान के अनुच्छेद 263 (अंतरराज्य परिषद) के अंतर्गत राष्ट्रपति के एक सलाहकार निकाय के रूप में गठित किया गया था।
  • अध्यक्ष केंद्रीय शहरी विकास मंत्री ।
  • रचनाइसमें भारत सरकार के नगर विकास मंत्री और राज्यों के स्थानीय स्वशासन के प्रभारी मंत्री सम्मिलित होते हैं।

 Final Result – CIVIL SERVICES EXAMINATION, 2023.   Udaan-Prelims Wallah ( Static ) booklets 2024 released both in english and hindi : Download from Here!     Download UPSC Mains 2023 Question Papers PDF  Free Initiative links -1) Download Prahaar 3.0 for Mains Current Affairs PDF both in English and Hindi 2) Daily Main Answer Writing  , 3) Daily Current Affairs , Editorial Analysis and quiz ,  4) PDF Downloads  UPSC Prelims 2023 Trend Analysis cut-off and answer key

THE MOST
LEARNING PLATFORM

Learn From India's Best Faculty

      

 Final Result – CIVIL SERVICES EXAMINATION, 2023.   Udaan-Prelims Wallah ( Static ) booklets 2024 released both in english and hindi : Download from Here!     Download UPSC Mains 2023 Question Papers PDF  Free Initiative links -1) Download Prahaar 3.0 for Mains Current Affairs PDF both in English and Hindi 2) Daily Main Answer Writing  , 3) Daily Current Affairs , Editorial Analysis and quiz ,  4) PDF Downloads  UPSC Prelims 2023 Trend Analysis cut-off and answer key

Quick Revise Now !
AVAILABLE FOR DOWNLOAD SOON
UDAAN PRELIMS WALLAH
Comprehensive coverage with a concise format
Integration of PYQ within the booklet
Designed as per recent trends of Prelims questions
हिंदी में भी उपलब्ध
Quick Revise Now !
UDAAN PRELIMS WALLAH
Comprehensive coverage with a concise format
Integration of PYQ within the booklet
Designed as per recent trends of Prelims questions
हिंदी में भी उपलब्ध

<div class="new-fform">







    </div>

    Subscribe our Newsletter
    Sign up now for our exclusive newsletter and be the first to know about our latest Initiatives, Quality Content, and much more.
    *Promise! We won't spam you.
    Yes! I want to Subscribe.