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दल परिवर्तन/दल बदल कानून (उड़ान)

दल परिवर्तन/दल बदल कानून (उड़ान)

  • 52वें संविधान संशोधन अधिनियम, 1985 को सामान्यतया दल बदल कानून कहा जाता है , इसमें संविधान के चार अनुच्छेदों यानी अनुच्छेद 101, 102, 190 और 191 में परिवर्तन किया गया है जो कि सांसदों तथा विधायकों द्वारा एक राजनीतिक दल से दूसरे दल में दल परिवर्तन के आधार पर निरर्हता के बारे में प्रावधान किया गया है।
  • इस संशोधन ने संविधान में एक नई अनुसूची (दसवीं अनुसूची) को जोड़ा है।
  • इसमें सांसदों तथा विधायकों द्वारा एक राजनीतिक दल से दूसरे दल में दल परिवर्तन के आधार पर निरर्हता के बारे में प्रावधान किया गया है।

91वां संविधान संशोधन अधिनियम (2003):

91वां संविधान संशोधन अधिनियम, 2003 द्वारा मंत्रिमंडल का आकार छोटा रखने अयोग्य लोगों को नागरिक पद धारण करने से रोकने एवं दल परिवर्तन विरोधी कानून को सशक्त बनाने के लिए निम्नलिखित उपबंध किए गए हैं :

  1. प्रधानमंत्री सहित संपूर्ण मंत्रिपरिषद का आकार क्रमशः लोकसभा की कुल सदस्य संख्या( अनुच्छेद 75) और विधानसभा की कुल सदस्य संख्या(अनुच्छेद 164) के 15% से अधिक नहीं होगा लेकिन, एक राज्य में मुख्यमंत्री सहित मंत्रियों की संख्या 12 से कम नहीं होगी।
  2. संसद के किसी भी सदन के सदस्य (अनुच्छेद 75) या राज्य विधानमंडल के सदस्य (अनुच्छेद 164)जो किसी भी राजनीतिक दल से संबंधित हो,जिसे दल बदल के आधार पर अयोग्य घोषित किया गया है, वह किसी भी मंत्री पद को धारण करने के लिए अयोग्य होगा।
  3. संसद या राज्य विधानमंडल के किसी भी सदन का, किसी भी राजनीतिक दल का ऐसा सदस्य जो दल परिवर्तन के आधार पर अयोग्य ठहराया गया हो, किसी भी लाभ के राजनीतिक पद को धारण करने के लिए अयोग्य होगा।
  4. दसवीं अनुसूची के उपबंध ( दल परिवर्तन विरोधी कानून) विभाजन की उस दशा में लागू नहीं होंगे, जब किसी दल के एक तिहाई सदस्य उस विभाजित समूह में शामिल हों। अर्थात विभाजन के आधार पर निरर्हकों के लिए कोई और संरक्षण नहीं है

दल-परिवर्तन कानून के उपबंध

अयोग्यताएं

राजनीतिक दलों के सदस्य :

किसी सदन का सदस्य जो किसी राजनीतिक दल का सदस्य है उस सदन की सदस्यता के निरर्हक माना जाएगा

क. यदि वह स्वेच्छा से ऐसे राजनीतिक दल की सदस्यता छोड़ देता है अथवा

ख. यदि वह सदन में अपने राजनीतिक दल के निर्देशों के विपरीत मत देता है या मतदान में अनुपस्थित रहता है तथा राजनीतिक दल से उसने 15 दिनों के भीतर क्षमादान ना पाया हो

निर्दलीय सदस्य :

कोई निर्दलीय सदस्य (जो बिना किसी राजनीतिक दल का उम्मीदवार होते हुए चुनाव जीता हो) किसी सदन की सदस्यता के निरर्हक हो जाएगा यदि वह उस चुनाव के बाद किसी राजनीतिक दल की सदस्यता धारण कर लेता है।

मनोनीत सदस्य :

एक मनोनीत सदस्य सदस्यता के अयोग्य हो जाएगा, यदि वह सदन में अपना स्थान ग्रहण करने के 6 माह बाद किसी राजनीतिक दल की सदस्यता ग्रहण कर लेता है। इसका अर्थ यह है, कि वह सदन की सदस्यता प्राप्त करने के 6 माह के भीतर किसी भी राजनीतिक दल की सदस्यता ग्रहण कर सकता है(निलंबित/अयोग्य हुए बिना)।

अपवाद :

दल परिवर्तन के आधार पर उपर्युक्त अयोग्यता निम्नलिखित दो मामलों में लागू नहीं होगी :

क. यदि कोई सदस्य दल में टूट के कारण दल से बाहर हो गया हो, दल में टूट तब मानी जाती है जब दो तिहाई सदस्य सदन में एक नए दल का गठन कर लेते हैं।

ख. यदि कोई सदस्य पीठासीन अधिकारी चुने जाने पर अपने दल की सदस्यता से स्वैच्छिक रूप से बाहर चला जाता है अथवा अपने कार्यकाल के बाद अपने दल की सदस्यता फिर से ग्रहण कर लेता है।

निर्धारण प्राधिकारी. :

• दल-परिवर्तन से उत्पन्न अयोग्यता संबंधी प्रश्नों का निर्णय सदन का अध्यक्ष करता है।

• हालांकि, कितोहोतो-होलोहन मामले (1993) में उच्चतम न्यायालय ने दसवीं अनुसूची के तहत अध्यक्ष के निर्णय की अंतिम रूप को असंवैधानिक घोषित कर दिया, और कहा कि उसके निर्णय की भी दुर्भावना, प्रतिकूलता आदि के आधार पर न्यायिक समीक्षा की जा सकती है।

नियम बनाने की शक्ति:

• एक सदन के अध्यक्ष को दसवीं अनुसूची के प्रावधानों को प्रभावी करने के लिए नियम बनाने की शक्ति प्राप्त है। ऐसे सभी नियमों को 30 दिनों के लिए सदन के समक्ष रखा जाना आवश्यक है। सदन नियमों को कम कर सकता है, इनमें सुधार कर सकता है अथवा अस्वीकृत कर सकता है।

• अध्यक्ष दल परिवर्तन को संज्ञान में तभी लेता है जब सदन की किसी भी सदस्य द्वारा उसे शिकायत प्राप्त हो।

• वह इस मामले को विशेषाधिकार समिति के पास जांच के लिए भेज सकता है। अतः दल-परिवर्तन का कोई तत्काल और स्वयमेव प्रभाव नहीं होता।

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