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केन्द्र (भाग V) और राज्य मंत्रीपरिषद (भाग VI) (उड़ान)

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केन्द्र (भाग V) और राज्य मंत्रीपरिषद (भाग VI) (उड़ान)

केंद्रीय /राज्य मंत्रिपरिषद
  • भारतीय परिषद अधिनियम, 1861 में लॉर्ड कैनिंग द्वारा प्रारंभ की गई पोर्टफोलियो प्रणाली को मान्यता प्रदान की गई।
  • यूनाइटेड किंगडम में मंत्रिपरिषद वास्तविक कार्यपालिका है, जो परंपरा के आधार पर कार्य करता है।
  • भारत में मंत्रिपरिषद प्रणाली को भारतीय संविधान में संहिताबद्ध और उल्लेखित किया गया है।

 

मापदंड केंद्रीय मंत्रिपरिषद (CCOM) राज्य मंत्रिपरिषद (SCOM)

नियुक्ति, शपथ और वेतन

· अन्य मंत्रियों को प्रधानमंत्री की सलाह पर राष्ट्रपति द्वारा नियुक्त किया जाता है

· प्रत्येक नए मंत्री को राष्ट्रपति द्वारा शपथ दिलाई जाती है।

· वेतन संसद द्वारा निर्धारित किया जाता है।

· अन्य मंत्रियों को मुख्यमंत्री की सलाह पर राज्यपाल द्वारा नियुक्त किया जाता है

· प्रत्येक नए मंत्री को राज्य के राज्यपाल द्वारा शपथ दिलाई जाती है।

· वेतन राज्य विधायिका द्वारा निर्धारित किया जाता है।

संवैधानिक प्रावधान

अनुच्छेद 74 (राष्ट्रपति को सहायता और सलाह देने के लिए एक केंद्रीय मंत्रिपरिषद होगी) / 163 (राज्यपाल को सहायता और सलाह देने के लिए एक राज्य मंत्रिपरिषद होगी):

• राष्ट्रपति / राज्यपाल क्रमशः केंद्रीय मंत्रिपरिषद के अध्यक्ष के रूप में प्रधानमंत्री और राज्य केंद्रीय मंत्री परिषद के प्रधान के रूप में मुख्यमंत्री की सलाह के अनुसार कार्य करेंगे।

• राष्ट्रपति सलाह पर पुनर्विचार के लिए कह सकता हैं, लेकिन पुनर्विचार के पश्चात दी गई सलाह बाध्यकारी होगी।

• केंद्रीय मंत्री परिषद / राज्य मंत्रिपरिषद द्वारा दी गई सलाह पर कोई न्यायालय विचार नहीं कर सकता।

• लोकसभा / राज्य विधान सभा के भंग होने के बाद भी केंद्रीय मंत्रिपरिषद / राज्य मंत्रिपरिषद अपना कार्यालय नहीं छोड़ेंगे(1971 में उच्चतम न्यायालय द्वारा निर्णय ) ।

• जहाँ भी संविधान में राष्ट्रपति / राज्यपाल की संतुष्टि की अपेक्षा होती है, वहां संतुष्टि केवल राष्ट्रपति / राज्यपाल की ना होकर केंद्रीय मंत्रिपरिषद/ राज्य मंत्रिपरिषद की भी होगी (1974 में SC द्वारा निर्णय)।

अनुच्छेद 75/164:

• मंत्रियों को प्रधानमंत्री/मुख्यमंत्री की सलाह पर राष्ट्रपति / राज्यपाल द्वारा नियुक्त किया जाता है और ये राष्ट्रपति / राज्यपाल के प्रसादपर्यन्त तक पद धारण करते हैं।

• राष्ट्रपति / राज्यपाल द्वारा किसी मंत्री को पद और गोपनीयता की शपथ दिलाई जाती है।

• इनका वेतन संसद / राज्य विधानसभा द्वारा निर्धारित किया जाता है।

• मंत्रीपरिषद में प्रधानमंत्री सहित मंत्रियों की कुल संख्या सदन के सदस्यों की कुल संख्या के 15 प्रतिशत से अधिक नहीं होनी चाहिए(91वां संविधान संशोधन)| संविधान में निश्चित संख्या और वर्गीकरण का उल्लेख नहीं किया गया है, बल्कि इसे समय और परिस्थिति की आवश्यकताओं के अनुसार प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री पर छोड़ दिया गया है|

• किसी राज्य में मुख्यमंत्री सहित राज्य विधायिका में मंत्रियों की संख्या 12 (91 वें संविधान संशोधन, 2003) से कम नहीं होनी चाहिए।

• केंद्रीय मंत्रीपरिषद / राज्य मंत्रीपरिषद सामूहिक रूप से लोकसभा (संसद नहीं) / राज्य विधान सभा के प्रति उत्तरदाई होती है।

• बिना किसी सदन की सदस्यता के कोई सदस्य अधिकतम 6 माह की अवधि के लिए मंत्री बना रह सकता है।

• दलबदल के आधार पर जिस सदस्य को अयोग्य घोषित कर दिया जाता है, वह सदस्य मंत्री (91 वॉ संविधान संशोधन , 2003) के रूप में नियुक्त होने के लिए भी अयोग्य होगा।

अनुच्छेद 88/177:

• प्रत्येक मंत्री को दोनों सदनों की कार्यवाही में भाग लेने और बोलने का अधिकार है, लेकिन वह केवल मतदान उसी सदन में कर सकता है जिस सदन का वह सदस्य होता है ।

• एक मंत्री जो संसद / राज्य विधायिका के किसी एक सदन का सदस्य होता है, उसे दूसरे सदन की कार्यवाही में भाग लेने और बोलने का अधिकार होता है। लेकिन वह मतदान केवल उसी सदन में कर सकता है जिस सदन का वह सदस्य होता है ।

मंत्री के उत्तरदायित्व

सामूहिक उत्तरदायित्व :

• केंद्रीय मंत्रिपरिषद /राज्य मंत्रिपरिषद एक दल के रूप में कार्य करती है और संयुक्त रूप से लोकसभा / राज्य विधानसभा के प्रति उत्तरदाई होती है।

• यदि लोकसभा / राज्य विधानसभा अविश्वास प्रस्ताव पारित करती है, तो सम्पूर्ण केंद्रीय मंत्रिपरिषद / राज्य मंत्रिपरिषद को राज्यसभा / राज्य विधान परिषद के मंत्रियों सहित त्यागपत्र देना पड़ता है।

• कैबिनेट के फैसले सभी कैबिनेट मंत्रियों (और अन्य मंत्रियों) के लिए बाध्यकारी हैं। यदि कोई मंत्री कैबिनेट के फैसले से सहमत नहीं है और वह इसकी प्रतिरक्षा करने के लिए तैयार नहीं है, तो उसे त्यागपत्र दे देना चाहिए। ( तत्कालीन उदाहरण: कृषि कानून मुद्दे पर अकाली दल के सांसद ने मंत्री के पद से इस्तीफा दे दिया )

व्यक्तिगत उत्तरदायित्व :

• जब यह कहा जाता है कि कोई मंत्री राष्ट्रपति के प्रसादपर्यंत तक पद धारण करता है, इसका अर्थ है कि राष्ट्रपति किसी मंत्री को प्रधानमंत्री की सलाह पर उस समय भी पदच्युत कर सकता है जब केंद्रीय मंत्री परिषद को लोकसभा का विश्वास प्राप्त हो।

कोई विधिक उत्तरदायित्व नहीं:

• ब्रिटेन के विपरीत, भारतीय संविधान में मंत्री के विधिक उत्तरदायित्व का कोई प्रावधान नहीं है।

अन्य

केंद्रीय मंत्री परिषद:

• संवैधानिक निकाय, संविधान के अनुच्छेद 74 और 75 में विस्तार से वर्णन किया गया है।

• अनुच्छेद 60 से 70 मंत्रियों के निकाय से संबन्धित है।

• तीनों श्रेणियाँ – कैबिनेट मंत्री, राज्य- मंत्री और उपमंत्री शामिल हैं।

• सरकारी कामकाज के उद्देश्य से एक निकाय के रूप में नहीं मिलते हैं ।

• कैबिनेट द्वारा लिए गए निर्णयों को लागू करता है।

मंत्रिमंडल :

• 44वें संविधान संशोधन 1978 के द्वारा अनुच्छेद 352 में सम्मिलित किया गया, जो केवल कैबिनेट को परिभाषित करता है, इसकी शक्तियों और कार्यों का वर्णन नहीं करता है।

• लघु निकाय – 15 से 20 मंत्री होते हैं।

• इसमें केवल कैबिनेट मंत्री ही सम्मिलित हैं।

• एक निकाय के रूपमें प्रायः मिलते हैं और सरकारी कामकाज के संदर्भ में निर्णय लेते हैं।

• मंत्रिपरिषद द्वारा अपने निर्णयों के क्रियान्वयन का पर्यवेक्षण करता है।

किचन केबिनेट :

• इस अनौपचारिक निकाय में प्रधानमंत्री और उसके दो से चार प्रभावशाली सहयोगी होते हैं, जिन पर उसे विश्वास होता है और जिनके साथ वह प्रत्येक समस्या पर चर्चा कर सकता हैं, और यही वास्तविक केंद्रीय शक्ति के रूप में कार्य करता है|

• इसमें न केवल कैबिनेट मंत्री बल्कि मित्र और परिवार कि लोग भी सम्मिलित हो सकते हैं ।

• ‘किचन कैबिनेट’ केवल भारत में ही नहीं है, बल्कि संयुक्त राज्य अमेरिका और ब्रिटेन में भी मौजूद है।

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